Monday, October 5, 2015

☀ ईश उपनिषद् ☀ ।। प्रथम मन्त्र ।। ईशावास्यमिद्ँ सर्वे यत्किञ्च जगत्यां जगत् | तेन त्यक्तेन...

☀ ईश उपनिषद् ☀

।। प्रथम मन्त्र ।।

ईशावास्यमिद्ँ सर्वे यत्किञ्च जगत्यां जगत् |

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृध: कस्य स्विद्धनम् ||१||


हे मनुष्यों ! यह सब जो कुछ संसार में चराचर वस्तु है| ईश्वर से ही व्याप्त है, अर्थात् ईश्वर सर्वत्र व्यापक है,उसी ईश्वर के दिए हुए पदार्थो से भोग करो, किसी के भी धन का लालच मत करो | अर्थात् किसी के भी धन को अन्याय पूर्वक लेने की इच्छा मत करो |


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