- निन्दा व स्तुति-
दहय माना:सुतीव्रेण नीचा:पर-यशोअग्निना।
अशक्ता:तत् पदम् गन्तुम् ततो निन्दाम् प्रकुर्वते।। (चाणक्य नीति)
अर्थ-दुर्जन दूसरे की कीर्तिरूपी अग्नि से जलते हुए जब उस पद को प्राप्त करने मे असमर्थ रहते हैं,तब वे उस गुणी की निन्दा करने मे प्रवृत्त हो जाते हैं।
विमर्श-नीच किसे कहते हैं?भविष्यपुराण में नीच का लक्षण इस प्रकार दिया गया हैं-
वदन्ति अन्यद् करोति अन्यद् गुरुदेवाग्रतो यत:।
स नीच इति विजानीतम् य:अनाचार:तथापर:।।(भविष्यपुराण)
जो गुरु,माता-पिता,आचार्य और विद्वानों के समक्ष कहता कुछ और है और करता कुछ और है तथा अनाचार मे संलग्न रहता है,उसे ‘नीच’ जानना चाहिए।
निन्दा क्या है?महर्षि दयानंद सरस्वती ने निन्दा और स्तुति की परिभाषा इस प्रकार की है–
'गुणेषु दोषारोपणमसूया’ अथवा 'दोषेष गुणारोपणमसूया’ तथा 'गुणेषु गुणारोपणम दोषेष दोषारोपणम च स्तुति:’-जो गुणों मे दोष अथवा दोषो मे गुण लगाना है वह निन्दा और गुणों मे गुण तथा दोषों मे दोषों का कथन करना स्तुति कहाति है अर्थात् मिथ्या-भाषण का नाम निन्दा और सत्यभाषण का नाम स्तुति हैं।
-सत्यार्थप्रकाश,चतुर्थ समुल्लास
नीच मनुष्य दूसरों की बढ़ती हुई कीर्ति से जलकर उनके सम्बन्ध में मनमाने दोष लगाने लगता हैं।
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