Monday, October 12, 2015

"ओ३म । 🌹 स्वामी दयानंद सरस्वती जी के प्रमाणिक विचार। (दयानंद ग्रन्थ माला से) 🌹 👉विषय:- सहजानंद आदि..."

ओ३म ।
🌹 स्वामी दयानंद सरस्वती जी के प्रमाणिक विचार। (दयानंद ग्रन्थ माला से) 🌹
👉विषय:- सहजानंद आदि मतों का खण्डन।
👉वेदों में कहा है की ईस्वर सर्वव्यापक है; वीर्यरूप शरीर–छिद्र और नाड़ी से रहित है; शुद्ध है और पापरहित है"। इसलिये कृष्ण को ईस्वर नही मान सकते; क्योंकि उसका शरीर जन्म-मरण रूप था।

👉ब्राह्मण भाग में कहा है की ,“अपना गुरु जो की वेद पढ़ा हुआ हो और केवल एक ईस्वर की ही भक्ति करता हो; उसके पास शिष्य को अपने हाथ में समिधः नामक लकड़ियों को लेकर जाना चाहिए।
और यही मनु भी साक्षी देता है की ,"जो ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य गुरु अपने शिष्य को यज्ञोपवीत आदि धर्मकिर्या कराने के बाद "वेद” को अर्थ और कल्प सहित पढ़ावे; तो ही उसको “आचार्य” कहना चाहिए।
👉सहजानंद की बनाई हुई शिक्षा पत्री में पाखण्डों का वर्णन किया है। जो नही मानने चाहिए।
👉सहजानंद ने जो कहा है की कृष्ण के बायीं और राधा खड़ी है; और उनकी छाती पर लक्ष्मी बैठी है—–आदि-आदि गलत है।। क्योंकि यह अनुमान और शब्द द्वारा किसी को भी निश्चय नही होता है। और जो छाती पर लक्ष्मी बैठी है तो क्या कृष्ण के मुख में दरिद्रता बैठी है।–यह मानना पड़ेगा। वैसे महाभारत में कहा है की ,“कृष्ण द्वारिका के पास मर गए” अब कौन जाने की कृष्ण का जीव इस समय कहा है? क्योंकि वृंदावन में कृष्ण क्रीड़ा करते हुए इस समय तो किसी को नही दीखते। सिर्फ पथरों की मूर्तियाँ दिखती है। इसलिए निराकार, जन्म- मरण रहित ईस्वर को छोड़ के कृष्ण का ध्यान करना मिथ्या है।
👉पथ्थर आदि की मूर्ति के घर को देवालय नाम दिया है। इसमें उनका दर्शन करना—— यह इस प्रकार अनर्थ वचन कहने से मालूम पड़ता है की सहजानंद को पथार्थ विधा बिलकुल नही जानता था।
👉मूर्तिपूजन करना, कण्ठी, तिलक धारण करना आदि पाखण्ड का आचरण करना वेद विरुद्ध है।
👉वेद में कही पर भी नही कहा की कृष्ण की ही भक्ति करनी चाहिए। यही स्वधर्म है। अतः गलत है। कृष्ण को प्रभु नाम देना ही गलत है; क्योंकि उसमें जन्म-मरण आदि दोष हुए है।
👉 स्त्रियों को ज्ञान की वार्ता नही सुननी चाहिए।——- यह भी उसने गलत कहा है। क्योंकि याज्ञवल्क्य आदि महान ऋषियों ने गार्गी आदि इस्त्रियो के साथ धर्म विषय पर विचार किया था।
👉कृष्ण दीक्षा लेनी; तुलसी आदि की माला धारण करना और उधूर्वपुण्ड्र लगाना वेद विरुद्ध है। जो कण्ठी, तिलक धारण करने से पूण्य होता तो कण्ठी का भार बांध लो और समस्त मुख तथा शरीर पर लेप लगा ले; तो ज्यादा पूण्य होगा।—–ऐसा मानना पड़ेगा? यदि ऐसा है तो यह काम जल्दी करो।
👉मेरे आश्रित शिष्यों—— जो यह कहा वह भी मिथ्या है। क्योंकि जिसको जन्म-मरण दोष प्राप्त हुए; ऐसे अविद्वान जीव का आश्रय निष्फल है।
👉नारायण और शिव दोनों एक ही है।———ऐसा जो सहजानंद ने कहा—— वह मिथ्या है; क्योंकि वेद में शिव और नारायण को ब्रह्मरूप माना नही।
👉राधा कृष्ण को सहजानंद ने या दूसरे किसी ने प्रत्यक्ष देखा नही; फिर उसकी मूर्ति कैसे बनाई? अतः वेदविरुद्ध होने से सहजानंद ही नास्तिक था। तो उसके चेले भी नास्तिक है।
👉हरि प्रत्यक्ष दीखता नही है और मूर्तियों में भोजन करने की शक्ति नही है। इस कारण से मूर्ति को नैवेध धरना व्यर्थ है। यह बिलकुल छलकपट है। वरना भोजन श्रम से प्राप्त करना पड़ता है।
👉पथ्थर की मूर्ति स्वरूप जिसकी प्रतिष्ठा होती है; वह कृष्ण का स्वरूप नही हो सकता। क्योंकि वह तो केवल पथ्थर ही है। ऐसा पथ्थर किसी को कभी भी सेवनीय नही। अतः नमन कैसा? जो सर्वशक्तिमान है; अवताररहित है; न्यायकारी है; दयालु है; सर्वन्त्यमि है; सर्वव्यापक है; निराकार है और श्रेष्ठ परमात्मा है; उसकी सब मनुष्यों को पूजा करनी चाहिए और उसी को नमन करना चाहिए।
👉हे आर्यो! कृपा एक बार फिर से पढ़ो। —–राजिंदर वैदिक। 👏


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