Rajinder Kumar Vedic
“वैदिक ज्ञान” (भाग-4 )
लेखक : राजिंदर वैदिक
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कठोउपनिषद : द्वितीय अध्याय: द्वितीय वल्ली, मन्त्र:1 ,2 ,3 ,“ सरल विशुद्ध ज्ञानस्वरूप अजन्मा परमेस्वर का ग्यारह द्वारो वाला मनुष्य रूप पुर(नगर) है, इसके रहते हुए ही परमेस्वर का ध्यान आदि साधन करके मनुष्य कभी शोक नही करता, अपितु जीवन मुक्त होकर मरने के बाद विदेहमुक्त हो जाता है. (1 )
जो विशुद्ध परमधाम में रहने वाला स्वयं प्रकाश है, वही अंतरिक्ष में निवास करने वाला वसु है, घरो में उपस्थित होने वाला अतिथि है और यही की वेदी पर स्थापित अग्निस्वरूप तथा उसमे आहुति डालने वाला "होता” है, तथा समस्त मनुष्यो में रहने वाला, मनुष्यो में श्रेष्ठ देवतावों में रहने वाला, सत्य में रहने वाला और आकाश में रहने वाला है तथा जलो में नाना रूपों से प्रकट होने वाला और पर्वतो में नाना रूपों से प्रकट होने वाला है. वही सबसे बड़ा परम सत्य है. जो प्राण को ऊपर की और उठाता है और अपान को नीचे धकेलता है, शरीर के मध्य बैठे हुए उस सर्वश्रेष्ठ भजने योग्य परमात्मा को सभी देवता उपासना करते है. जो यह जीवो के क्रमानुसार नाना प्रकार के भोगो का निर्माण करने वाला परम पुरुष परमेस्वर सबके सो जाने पर भी जागता रहता है, वही परम विशुद्ध है, वही ब्रह्म है. वही अमृत कहलाता है तथा उसी में सम्पूर्ण लोक आश्रय पाये हुए है, उसे कोई भी अतिक्रमण नही कर सकता है.(8
जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट एक ही अग्नि नाना रूपों में उनके समान रूप वाला सा हो रहा है, वैसे ही समस्त प्राणियों का अंतरात्मा परब्रह्म एक होते हुए भी नाना रूपों में उन्ही के जैसा रूप वाला हो रहा है, और उनके बाहर भी है.(9 )
जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड में प्रविस्ट एक ही vayu नाना रूपों में उनके समान रूप वाला सो हो रहा है, वैसे ही sb प्राणियों को antaraatma परब्रह्म एक होते हुए भी नाना रूपों में उन्ही के जैसे रूप वाला हो रहा है और उनके बाहर भी है. (10)
जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड का prkashk sury देवता logo की ankho से होने wale बाहर के dosho से lipt नही होता है, उसी प्रकार sb प्राणियों का antaraatma एक परब्रह्म परमात्मा logo के dukho से lipt नही hata है, kyoki sbme रहता hua भी vh सबसे alg है. (11)
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