ओ३म्
भूपेश आर्य
भीमा इन्द्रस्य हेतय: ४/३७/८
प्रभु के दण्ड बडे भयंकर हैं।
२.विष्णों कर्माणि पश्यत ७/२६/६
व्यापक प्रभु के आश्चर्य-जनक कर्मों को देखों।
३.न वा उ सोमो व्रजिनं हिनोति ८/४/१३
प्रभु पापी को कभी नहीं
बढाते।
४.हत्वी दस्यून् प्रार्यं वर्णमावत् २०/११/९
प्रभु दुष्टों का विनाश कर
आर्य जनों की रक्षा करता
है।
५.विशं-विशं मघवा पर्यशायत २०/१७/६
प्रत्येक मनुष्य के अन्दर
प्रभु निवास कर रहा है।
६.मा नो हिंसी: पितरं मातरं च ११/२/२९
हे प्रभु! हमारे माता पिता
को कष्ट मत दो।
७.वि द्विषो वि म्रधो जहि १९/१५/१
हमारी द्वेषव्रत्तियों और हिंसाव्रत्तियों को नष्ट कर।
८.अग्ने सख्ये मा रिषामा
वयं तव २०/१३/३
हे प्रभो ! तेरी मैत्री पाकर
हम विनाश से बच जायें।
९.मा त्वायतो जरितु : काममूनयो: २०/२१/३
हे प्रभु! तेरी चाह वाले
मुझ भक्त के मनोरथ
को अपूर्ण मत रख।
१०.वयं त इन्द्र विश्वह प्रियास: २०/३४/१८
हे प्रभु! हम सदा तेरे प्यारे
बने रहें।
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