Sunday, October 11, 2015

Rajinder Kumar Vedic ओउम विषय: गीता में वर्णित सर्वोत्कृस्ट तत्व (कर्मयोग) (भाग-42) लेखक:...

Rajinder Kumar Vedic


ओउम
विषय: गीता में वर्णित सर्वोत्कृस्ट तत्व (कर्मयोग) (भाग-42)
लेखक: राजिंदर वैदिक
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(गीता.अ.१२/ .6 .)श्री कृष्ण जी स्पस्ट करते है की जो परमात्मा में सब कर्मो का सन्यास करेगा. अर्थार्थ अपनी इन्द्रियों, मन, बुद्धि और प्राणो की गति को परमात्मा में समाप्त करेगा. ठहराए गा. परमात्मा में विलय करेगा. मृत्युपर्यन्त तक अनन्ययोग से परमात्मा का ध्यान कर उसको भेजेगा. उन परमात्मा में चित्त लगाने वाले (गीता.अ.12 / 7 से 11 )लोगो को परमात्मा इस मृत्यु मय संसार-सागर से बिना विलम्भ किये उद्धार कर देता है. अतएवं परमात्मा में ही मन लगा, परमात्मा में ही बुद्धि को स्थिर कर, जिससे तू आगे निसंदेह परमात्मा में ही निवास करेगा. इस प्रकार बार-बार अभ्यास की सहायता से अपने चित्त को विषयो से, सांसारिक सुख-भोग ऐष्वर्य से हटा कर परमात्मा में ही लगा. बार-बार प्रत्यन करके परमात्मा की प्राप्ति कर लेने की आशा रख. बार-बार प्रत्यन करते हुए जो तू कर्म करेगा, उसके फलो का त्याग कर दे. फल की चिंता ही मत कर, क्योकि अभ्यास की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ है.(12 /12 /)क्योकि जब तक हमे यह ज्ञान नही होगा की किसका अभ्यास करे?, वह आत्मा-परमात्मा किस अभ्यास से मिलेगा? इसलिए अभ्यास के बाद जो ज्ञान प्राप्त होगा वह श्रेष्ठ है. इसलिए उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए अभ्यास करे. वह ज्ञान ध्यान के कारण मिलता है, इसलिए ध्यान की योग्यता ज्ञान से भी अधिक है. और ध्यान की अपेक्षा कर्मफल का त्याग श्रेष्ठ है. क्योकि हमने जान लिया है की आत्मा को अन्तर में प्राप्त करना है, इसके लिए अभ्यास करना है. ध्यान-विधि से सफल होता है जिसके फलस्वरूप प्राप्त होता है. . मगर जिसने ये सब कर्म किये तो कर्म करते वक्त उसने इनके फलस्वरूप मिलने वाले परमात्मा को छोड़ दिया. मिलता है या नही मिलता है, इसकी वह चिंता ही नही करता है. वह तो ज्ञान_अभ्यास और ध्यान रूपी कर्म नित्य करता ही रहता है.ऐसा कर्मयोगी जिसने फल का त्याग कर दिया है, तुरंत ही शांति को प्राप्त होता है.
क्रमश: –राजिंदर वैदिक


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