Rajinder Kumar Vedic
“भारत का वैदिक धर्म”
——लेखक : राजिंदर वैदिक
सारे धर्मो से अच्छा , धर्म ये हमारा,
हम डूबे रहे इसमें, यही उद्देश्य है हमारा.
मंदिर-मस्जिद-गिरजा, नही कोई गुरुद्वारा,
प्रतीक कोई नही इसमें, जहाँ बंट जाय जग सारा,
सब कुछ शरीर के अंदर, जितना खोजे , उतना डूबे गहरा,
मस्ती भरा ये धर्म, सबको लगता है प्यारा.
सारे धर्मो से अच्छा , धर्म ये हमारा,
हम डूबे रहे इसमें, यही उद्देश्य है हमारा.
इंसानियत का सदाचार, है पहला इसका द्वार,
अंतःकरण शुद्ध करके, घुस जाये इसके अंदर,
मन-बुद्धि की किर्या को, अभ्यास से करे नियंत्रण
जितना करो अभ्यास, उतनी पाये मस्ती न्यारा.
सारे धर्मो से अच्छा , धर्म ये हमारा,
हम डूबे रहे इसमें, यही उद्देश्य है हमारा.
सारे धर्मो से अच्छा, धर्म ये हमारा,
हम डूबे रहे इसमें, यही उद्देश्य है हमारा,
कोई नही छोटा-बड़ा, है शरीर सब के पास,
इसके अंदर जाकर , गोते मारे बार-बार .
नही कोई सामग्री , नही कोई है बंधन,
सब कोई स्वतंत्र , करने में इसका अभ्यास.
सारे धर्मो से अच्छा , धर्म ये हमारा,
हम डूबे रहे इसमें, यही उद्देश्य है हमारा.
न वर्णो का है झगड़ा, न स्त्री -पुरुष का झंझट ,
न उम्र की कोई सीमा, हर कोई निभाने को स्वतंत्र
न ही कोई समय है, जब चाहे चले जाये अपने अंदर,
ऐसा प्यारा धर्म है, नही कोई है नियंत्रण .
सारे धर्मो से अच्छा , धर्म ये हमारा,
हम डूबे रहे इसमें, यही उद्देश्य है हमारा.
ये धर्म सब अपना ले, नही जात-पात का झंझट ,
एक सा चेतन ही, बस दिखे सबके अंदर,
है शरीर का अंतर, चेतन में नही कोई अंतर,
यही आधार है इस धर्म का, लगे है सबको प्यारा.
सारे धर्मो से अच्छा , धर्म ये हमारा,
हम डूबे रहे इसमें, यही उद्देश्य है हमारा.
——राजिंदर वैदिक
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