आज का सुविचार (12 अक्टूबर 2015, सोमवार, आश्विन कृष्ण अमावस्या)
जगत्यां जगत् पर एक सुन्दर उक्ति कथा है। एक हरा-भरा वृक्ष उस पर पंछी चहचहाते थे। अनेक घोंसले थे, एक बार ग्रीष्म ऋतु वृक्ष सूख चला, पक्षी फिर भी उसी पर रहे। उस वृक्ष के पत्तों में लकड़ी की रगड़ से आग लग गई, पत्ते तो पत्ते पक्षी भी जलने लगे।
एक राहगीर ने प्रश्न किया-
आग लगी इस वृक्ष पर
जलने लगे सव पात
तुम क्यों जलते पक्षियों
हैं पंख तुम्हारे पास
पक्षियों का उत्तर था
फल खाए इस वृक्ष के
गंदे कीने थे सब पात
यही हमारा धर्म है
जल मरेगें इसके साथ।
वे संगठन मरते-मरते भी जी उठते हैं, उच्च सोपान जा पहुचते हैं, जिसमें संस्थान समर्पित काम करते हैं। संस्थान रक्षक सदा ही संस्थान में सक्षम होता है। संस्थान भक्षक अक्षम होता है। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)
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