-डा मुमुक्षु आर्य
यज्ञ व योग करने की सरलतम विधि..
( क ) यज्ञ करने की सरलतम विधि-
१. तांबें या लोहे का हवन कुण्ड लें,
२. उसमें कुछ आम की लकडी के टुकडों द्वारा अग्नि प्रज्जवलित करें,
३. गायत्री मंत्र बोल कर शुद्ध सामग्री व शुद्ध घी से कम से कम बीस मिन्ट तक आहूतियां डालें |
नोट-हवन कुण्ड न हो तो किसी अन्य पात्र या रेत की ढेरी पर भी अग्नि प्रज्जवलित कर सकते हैं| किसी कारण इतनी भी व्यवस्था न हो सके तो एक कटोरे में दो मुट्ठी सामग्री व एक कडछी शुद्ध घी मिला कर चूल्हे या गैस की धीमी आंच पर रख कर 10-15 मिण्ट तक मन ही मन या बोल कर गायत्री मंत्र का जप करें | आस्था भजन चैनल पर प्रात: 5-6 बजे तक सन्ध्या उपासना व यज्ञ को विधिपूर्वक दिखाआ जाता है-उसे देख कर भी यज्ञ करना सीख सकते हैं |यज्ञ व योग श्रेष्ठतम कर्म हैं और अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों को दूर करने वाले हैं |प्रात: सायं यज्ञ व योग करना सब मनुष्यों का परम कर्तव्य है| जो धन व समय मूर्तियों की पूजा व तीर्थ यात्राओं आदि पर नष्ट किया जाता है यदि वही धन व समय यज्ञ व योग में लगाआ जाये तो मनुष्य जीवन को सफल बनाआ जा सकता है और सबको एकसूत्र में भी पिरोअा जा सकता है |
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( ख )योग अथवा ईश्वर पूजा की सरलतम विधि-
ध्यान मुद्रा में बैठ कर कम से कम आधे घंटे तक ओ३म् अथवा गायत्री मंत्र का अर्थ सहित जप करें,ध्यान में सफलता के लिये निरन्तरता व अहिंसा सत्य आदि यम नियमों का पालन करना आवश्यक है |
निराकार सर्वव्यापक सच्चिदानंद ईश्वर को प्राप्त करने या खोजने का अर्थ है-अष्टांग योग के निरन्तर अभ्यास के द्वारा ईश्वर से ज्ञान बल व आनन्द की प्राप्ति कर मोक्ष पद का अधिकारी बनना |सर्वव्यापक होने से ईश्वर सबको प्राप्त ही है परन्तु अविद्या के कारण जीवात्मा को उसकी अनुभूति नहीं होती,योगाभ्यास प्राप्त करने का प्रयास है और प्राप्त होना अनुभूति का प्रयाय है |
ऋषि मुनियों के देश भारत ( आर्यावर्त्त ) में यज्ञ व योग को छोड कर शराब, मांस, तम्बाकू, वेश्यायों व पाषाण पूजा की दुकानें होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है | इन वेदविरुद्ध बातों का समर्थन करने वाली सरकारें,लोग व संस्थाएं घोर पाप के भागी व कठोर दण्ड के पात्र हैं |
यज्ञ व योगादि धर्मयुक्त कार्यो के अनुष्ठान में द्वन्दों को सहन करना ही तप कहलाता हैं।अर्थात सुख दुःख ,लाभ हानि ,मान अपमान ,सर्दी गर्मी को सह कर भी यज्ञ योग व वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार करते रहना चाहिये-यही वेद का ईश्वर का आदेश है उपदेश है
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