Friday, January 16, 2015

बहुत सुँदर पंक्तियाँ संयुक्त परिवार 👌👌👏👏 वो पंगत में बैठ के निवालों का तोड़ना, वो अपनों की संगत...

बहुत सुँदर पंक्तियाँ

संयुक्त परिवार

👌👌👏👏




वो पंगत में बैठ के

निवालों का तोड़ना,

वो अपनों की संगत में

रिश्तों का जोडना,


वो दादा की लाठी पकड़

गलियों में घूमना,

वो दादी का बलैया लेना

और माथे को चूमना,


सोते वक्त दादी पुराने

किस्से कहानी कहती थीं,

आंख खुलते ही माँ की

आरती सुनाई देती थी,


इंसान खुद से दूर

अब होता जा रहा है,

वो संयुक्त परिवार का दौर

अब खोता जा रहा है।


माली अपने हाथ से

हर बीज बोता था,

घर ही अपने आप में

पाठशाला होता था,


संस्कार और संस्कृति

रग रग में बसते थे,

उस दौर में हम

मुस्कुराते नहीं

खुल कर हंसते थे।


मनोरंजन के कई साधन

आज हमारे पास है,

पर ये निर्जीव है

इनमें नहीं साँस है,


फैशन के इस दौर में

युवा वर्ग बह गया,

राजस्थान से रिश्ता बस

जात जडूले का रह गया।


ऊँट आज की पीढ़ी को

डायनासोर जैसा लगता है,

आँख बंद कर वह

बाजरे को चखता है।


आज गरमी में एसी

और जाड़े में हीटर है,

और रिश्तों को

मापने के लिये

स्वार्थ का मीटर है।



वो समृद्ध नहीं थे फिर भी

दस दस को पालते थे,

खुद ठिठुरते रहते और

कम्बल बच्चों पर डालते थे।


मंदिर में हाथ जोड़ तो

रोज सर झुकाते हैं,

पर माता-पिता के धोक खाने

होली दीवाली जाते हैं।


मैं आज की युवा पीढी को

इक बात बताना चाहूँगा,

उनके अंत:मन में एक

दीप जलाना चाहूँगा


ईश्वर ने जिसे जोड़ा है

उसे तोड़ना ठीक नहीं,

ये रिश्ते हमारी जागीर हैं

ये कोई भीख नहीं।


अपनों के बीच की दूरी

अब सारी मिटा लो,

रिश्तों की दरार अब भर लो

उन्हें फिर से गले लगा लो।


अपने आप से

सारी उम्र नज़रें चुराओगे,

अपनों के ना हुए तो

किसी के ना हो पाओगे

सब कुछ भले ही मिल जाए

पर अपना अस्तित्व गँवाओगे


बुजुर्गों की छत्र छाया में ही

महफूज रह पाओगे।

होली बेईमानी होगी

दीपावली झूठी होगी,

अगर पिता दुखी होगा

और माँ रूठी होगी।।।


Jai shri krishna

🙏🌹🙏




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