Friday, January 9, 2015

अंतर्ज्योति जगे जब मन में । जगमग ज्योति जगे जीवन में ।। ज्योतिर्मय है ओउम् प्रकाश । करता पाप ताप का...

अंतर्ज्योति जगे जब मन में ।

जगमग ज्योति जगे जीवन में ।।


ज्योतिर्मय है ओउम् प्रकाश ।

करता पाप ताप का नाश ।।


इसमें योगी ध्यान रमाते ।

और इससे है परम पद पाते ।।


अमृत स्त्रोत बहे जब भीतर ।

चंचल चित्त हो वश में शीतल ।।


शोधन बोधन तब हो पावे ।

ओउम् नाम जब सहज समावे ।।


सुमित आर्य




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