Monday, January 26, 2015

कोई प्रभु-भक्त है तो विद्वान नही, कोई विद्वान है तो योगी नही, कोई योगी है तो सुधारक नही, कोई सुधारक...

कोई प्रभु-भक्त है तो विद्वान नही,

कोई विद्वान है तो योगी नही,

कोई योगी है तो सुधारक नही,

कोई सुधारक है तो दिलेर नही,

कोई दिलेर है तो ब्रह्मचारी नही,

कोई ब्रह्मचारी है तो लेखक नही,

कोई लेखक है तो सदाचारी नही,

कोई सदाचारी है तो परोपकारी नही,

कोई परोपकारी है तो कर्मठ नही,

कोई कर्मठ है तो त्यागी नही,

कोई त्यागी है तो देशभक्त नही,

कोई देशभक्त है तो वेदभक्त नही,

कोई वेदभक्त है तो उदार नही,

कोई उदार है तो शुद्धाहारी नही,

कोई शुद्धाहारी है तो योद्धा नही,

कोई योद्धा है तो सरल नही,

कोई सरल है तो सुन्दर नही,

कोई सुन्दर है तो बलिष्ठ नही,

कोई बलिष्ठ है तो दयालु नही,

कोई दयालु है तो सयंमी नही…

परन्तु यदि आप ये सभी गुण एक ही स्थान पर देखना चाहे

तो “महर्षि दयानन्द” को देखो.——




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