Saturday, June 6, 2015

➿➿➿➿➿➿➿➿➿➿ स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी महाराज सुनाया करते थे कि पं. आर्यमुनि जी अपने व्याख्यानों...

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स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी महाराज सुनाया
करते थे कि पं. आर्यमुनि जी अपने व्याख्यानों में
पहलवानों के और मल्लयुद्धों के बड़े दृष्टान्त सुनाया करते थे
परन्तु थे दुबले पतले।

एक बार एक सभा में एक श्रोता पहलवान ने पण्डित जी से कहा, ‘‘आप विद्या की बातें और विद्वानों के दृष्ठान्त दिया करें। कुश्तियों की बातें सुनाना आपको शोभा नहीं देता। इसके लिये बल
चाहिये।’’ इस पर पण्डित जी ने कहा मल्लयुद्ध भी विद्या से ही जीता जा सकता है। इस पर पहलवान ने उन्हें ललकारा अच्छा फिर आओ कुश्ती कर लो। पण्डित जी ने चुनौती स्वीकार कर ली। सबने
रोका पर पण्डित जी कपड़े उतारकर कुश्ती करने पर अड़ गये। पहलवान तो नहीं थे।अखाड़ों में कुश्तियाँ बहुत देखा करते थे। सो स्वल्प समय में ही न जाने क्या दांव लगाया कि उस हट्टे-कट्टे पहलवान को चित करके उसकी छाती पर चढ़कर बैठ गये।

श्रोताओं ने बज्म (सभा) को रज्म (युद्धस्थल) बनते देखा। लोग
यह देखकर दंग रहे गये कि वेद शास्त्र का यह दुबला पतला
पण्डित मल्ल विद्या का भी मर्मज्ञ है।
पण्डित जी का जन्म बठिण्डा के समीप
रोमाना ग्राम का है। वे एक विश्वकर्मा परिवार में जन्मे थे। गुण
सम्पन्न थे। कवि भी थे। हिन्दी व
पंजाबी दोनों भाषाओं के ऊँचे कवि थे।
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——- वैदिक

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