Monday, January 11, 2016

२४ पौष 8 जनवरी 2016 😶 “ शुद्ध भोग ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् स्वादोरित्था विषूवतो...

२४ पौष 8 जनवरी 2016

😶 “ शुद्ध भोग ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् स्वादोरित्था विषूवतो मध्व: पिबन्ति गौर्य: । 🔥🔥
🍃🍂 या इन्द्रेण सयावरीर्वृष्णा मदन्ति शोभसे वस्वीरनु स्वराज्यम् ।। 🍂🍃

-ऋक्० १।८४।१०; सा० पू० ५।१।३।१
-सा० उ० ३।२।१५; अथर्व० २०।१०९।१

ऋषि:- गोतमो राहूगण: ।। देवता- इन्द्र: ।। छन्द:- विराडास्तारपक्त्ङि: ।।

शब्दार्थ- वे प्रकाशमान इन्द्रियाँ या आत्मशक्तियाँ इस प्रकार से स्वादु, ब्रह्मानन्द रस से रसीले व्यापक सोमरस का, शुद्ध भोग का, मोक्ष-सुख का पान करती हैं जो स्वराज्य का अनुसरण करने वाली होकर वसुरुप या वासिनी होकर और अपनी शोभा व दीप्ति के लिए बलवान् आत्मा के साथ मिलके चलनेवाली होकर आनन्दयुक्त होती हैं।

विनय:- स्वराज्य में ही प्रजाओं को असली सुख मिलता है। स्वराज्य में ही प्रजाएँ अपना अधिक-से-अधिक विकास कर सकती हैं। जब अन्दर स्वराज्य स्थापित हो जाता है, जब इस शरीर-राज्य की बागडोर इन्द्र (आत्मा) के अपने हाथों में आ जाती है तब गौरियों को, इन्द्रिय आदि इन्द्र-प्रजाओं को जो आलौकिक दिव्य सुख मिलता है, उनकी जो अद्भुत शोभा, दीप्ति बढ़ती है उसका हम साधारण लोग इस समय अनुमान भी नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे अन्दर या तो आत्मिक अराजकता फैली हुई है या किसी असुर का विदेशी शासन चल रहा है; स्वराज्य नहीं है। इसलिए हमारे अन्दर तो ये गौरियाँ इस समय विष्यरूपी मदिरा का ही पान कर रही हैं। इन्हें इस दिव्य सोमरस के पान का सुख अभी कैसे मिल सकता है जो आत्मराज्य हुए बिना नसीब नहीं होता? हाँ, जहाँ कहीं यह वृषा आत्मा फिर अपने ‘स्व’-राज्य को संभाल लेता है, वहाँ की अवस्था बिलकुल पलट जाती है। वहाँ ये इन्द्रियाँ स्वराज्य के अनुकूल चलनेवाली संयमयुक्त हो जाती हैं। ये वसुरुप, स्वराज्य की सम्पत्तिरूप या स्वराज्य की सच्ची वासिनी हो जाती हैं। ये अपनी प्रदीप्ति के लिए बलवान् इन्द्र के साथ चलने वाली हो जाती हैं। उस समय ये गौरियाँ स्वाधीनता को पाकर इन्द्र के साथ में अत्यन्त आनन्द प्राप्त करती हैं। तभी इन्हें उस 'मधु का, उस मोक्ष-सुख का, उस सोम का’ पान प्राप्त होता है। यही सच्चा सोमरस का पान है जिसे आत्मवश्य इन्द्रियाँ प्राप्त करती हैं। यही असली भोग है। ओह! हम बद्ध पुरुष तो कल्पना भी नहीं कर सकते कि “शुद्ध भोग” भी कोई वस्तु हो सकती है।

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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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