Tuesday, January 12, 2016

।।ओ३म्।। सभी को नमस्ते जी वैदिक संध्या  संध्या आर्यों के लिए प्राण सदृशा थी, इसमें विधिहिनता और...

।।ओ३म्।।
सभी को नमस्ते जी

वैदिक संध्या 
संध्या आर्यों के लिए प्राण सदृशा थी, इसमें विधिहिनता और निरर्थकता ने इसे सार हीन कर दिया था। इसके कारण यह थोड़े से लोगों में सिमट कर रह गयी थी। जो आस्तिकता को भरने वाली प्राण सदृशा संध्या 5-6 वर्ष के बालक बालिका से लेकर मृत्यु पर्यंत बिना नगा दोनों समय प्रातः और सांय की जाती थी, तभी प्रातराश एवं आहार लिया जाता था। एक और इसकी सारहीनता और दूसरी और ईश्वरीय संविधान वेदादि के पठन-पाठन की लुप्तता और तीसरे तीसरे स्त्री वर्ग को इसके पढने के अधिकार से वंचित कर देना आदि कारणों से सभ्यता एवं संकृति का वर्धन करने हारी संध्या आर्यों एवं आर्याओं के जीवन से समाप्त सी हो गयी, और इसका स्थान भिन्न भिन्न क्षेत्रीय भाषाओँ में चालीसा अथवा सरल संस्कृत में स्तोत्र आदि ने ले लिया जैसे शरीर में रक्त को प्राण पुरे शरीर में भ्रमण करवाता है, शुद्ध रक्त पंहुचता है, अशुद्ध रक्त को लाकर शुद्ध करवा पुनः पंहुचता है और यह अनवरत चलता रहता है तभी जीवन संभव है। यदि इसमें व्यवधान आ जाये तो प्रथमतः रोगी और अंततः प्राणान्त हो जाता है। आर्यों को यही संध्या आस्तिक बनाये रखती थी और धर्मं अर्थ, काम मोक्ष रुपी लक्ष्य प्राप्ति के लिए सतत प्रेरित करती रहती थी। आर्य और आर्या अपने कर्तव्यों के प्रति सजग हो, पुरुषार्थ कर इहलोक और परलोक के लक्ष्य को प्राप्त कर लिए करते थे। साथ ही साथ विपरीत विचार एवं शंशय आदि के आने पर इन्ही नैतिक कर्तव्यों के करते रहने मात्र से यह दूर होते रहते थे और सुर्यासम प्रखर तेजस्वी एवं तेजस्विनी आर्य-आर्यायें होती थी और तब राष्ट्र रहता था सुरक्षित, वैभवशाली और अपराजेय।
  पुनः इसी स्थिति की प्राप्ति हेतु ऋषि दयानंद ने संध्या को अन्धविश्वास, रूढ़ी एवं जटिलताओं से मुक्त कर मनुष्यमात्र के लिए सुलभ बनाकर आर्य एवं आर्याओं के पुनर्निर्माण हेतु द्वार खोल दिया है, अतः हम अपने श्रेष्ठ पूर्वजों के इन श्रेष्ठतम कर्मों को ग्रहण कर अपने गौरवशाली स्वरुप को वर्त्तमान में लावें। आर्यों! यही मनुष्ट है, यही मनुष्यों की रक्षा का उपाय है और शांति का द्वार है।
  प्रत्येक आर्य के लिए संध्या कर्तव्य कर्म है, पूर्ण प्रयत्न हो की संध्या, संध्या काल में ही हो। संध्या के समय का प्रतिदिन आर्य लोग निर्धारण करें, जिससे संध्काल में संध्या करने का पालन एवं एकरूपता बन सके।

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राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा
(वेद विद्या को जन जन तक पहुँचाने के लिए सङ्कल्पबद्ध)


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