Friday, April 1, 2016

प्रश्नोत्तरी ( सत्य असत्य का निर्णय विषय ) :- (1) प्रश्न :- सत्य किसको कहते हैं ? उत्तर :- जो पदार्थ...

प्रश्नोत्तरी ( सत्य असत्य का निर्णय विषय ) :-
(1) प्रश्न :- सत्य किसको कहते हैं ?
उत्तर :- जो पदार्थ या विषय जैसा है उसको वैसा ही जानना, मानना और उपयोग करना ही सत्य है, उसके विपरीत करना असत्य है ।
(2) प्रश्न :- सत्य और असत्य का निर्णय कैसे होता है ?
उत्तर :- सत्य और असत्य का निर्णय प्रमाणों के द्वारा होता है ।
(3) प्रश्न :- सत्य और असत्य का निर्णय क्यों करना चाहिये ?
उत्तर :- सत्य और असत्य का निर्णय न्याय के लिये करना चाहिये ।
(4) प्रश्न :- न्याय किसे कहते हैं ?
उत्तर :- किसी भी पदार्थ या विषय की परीक्षा प्रमाणों का आधार पर करना ही न्याय कहलाता है । उसके विपरीत वह अन्याय कहलाता है ।
(5) प्रश्न :- न्याय क्यों करना चाहिये ?
उत्तर :- क्योंकि न्याय किये बिना मनुष्य किसी भी तत्व को नहीं जान सकता है और जब जानेगा नहीं तो कर्म करने में प्रवृत नहीं हो सकता है । क्योंकि पहले ज्ञान है फिर कर्म है । इसलिये न्याय से सत्य का ज्ञान होने के बाद ही कर्म में प्रवृत होना योग्य है ।
(6) प्रश्न :- प्रमाण किसको बोलते हैं ?
उत्तर :- प्रमा को सिद्ध करने वाले साधनों को प्रमाण बोलते हैं ।
(7) प्रश्न :- प्रमा किसको बोलते हैं ?
उत्तर :- किसी भी विषय या किसी भी अर्थ को जिसको हमने अब तक नहीं जाना था, तो उसका ज्ञान हो जाना ही प्रमा कहलाता है ।
(8) प्रश्न :- प्रमाणों के बारे में बतायें ।
उत्तर :- प्रमाण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं :- (१) प्रत्यक्ष प्रमाण (२) अनुमान प्रमाण (३) शब्द प्रमाण
(9) प्रश्न :- प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब किसी विषय का हमारी इन्द्रियों से वर्तमान होता है तो जो साधन कार्य में आता है उसे प्रत्यक्ष प्रमाण बोलते हैं ।
(10) प्रश्न :- प्रत्यक्ष प्रमाण किस साधन को कहा जाता है ?
उत्तर :- प्रत्यक्ष प्रमाण हमारी बुद्धि वृत्ति ( विषय के साक्षात्कार करने की क्षमता ) को कहा जाता है । जैसे बचपन में बालक या बालिका को लाल रंग के फल की ओर संकेत करके कहा जाता है कि ये सेब है । तो बुद्धि में वो विषय बैठ जाता है । तो जब जीवन में कभी उसका उसी लाल रंग के फल से वर्तमान होता है तो वह व्यक्ति कह उठता है कि यह सेब है । क्योंकि बुद्धि वृति यानी कि जिसमें सेब बुद्धि में बैठ गया है । तो वह बुद्धि वृति ही को हम प्रत्यक्ष प्रमाण बोलेंगे केवल बुद्धि को ही नहीं । क्योंकि बुद्धि ने जब सेब को ग्रहण कर लिया तो उसका वही ग्राह्य रूप काम आया, सेब को प्रत्यक्ष करने में । जिससे की बुद्ध वृत्ति को प्रत्यक्ष प्रमाण बोला जायेगा ।
(11) प्रश्न :- प्रत्यक्ष प्रमाण कितने प्रकार का है ?
उत्तर :- प्रत्यक्ष प्रमाण दो प्रकार का है :- (१) बाह्य प्रत्यक्ष प्रमाण (२) अबाह्य प्रत्यक्ष प्रमाण
(12) प्रश्न :- बाह्य प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब विषयों का ज्ञान बाह्य करणों ( चक्षु, नासिका, त्वचा, श्रोत्र, जीह्वा ) के द्वार होता है तो उस ज्ञान को बाह्य प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं । और उस साधन ( बुद्धि वृत्ति ) को बाह्य प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं ।
(13) प्रश्न :- अबाह्य प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब विषयों का ज्ञान अन्तः करणों ( मन, बुद्धि आदि ) के द्वारा होता है तो उस ज्ञान को अबाह्य प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं । और उस साधन ( बुद्धिवृत्ति ) को अबाह्य प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं । जैसे भूख लगना, क्रोध आना, पीड़ा होना आदि ।
(14) प्रश्न :- विषयों का अबाह्य प्रत्यक्ष ज्ञान अन्तः करणों के द्वारा कैसे हो सकता है ?
उत्तर :- विषयों का प्रत्यक्ष ज्ञान केवल योगियों और तपस्वियों को ही उच्च अवस्था में होता है । तब उनको बाह्य करणों की आवश्यक्ता नहीं होती । केवल मन की उत्तम साधना से ही वे भूत, भविष्य, वर्तमान का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं ।
(15) प्रश्न :- अनुमान प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब दो धर्मों का परस्पर पक्का सम्बन्ध हो तो एक के होने से दूसरे का ज्ञान हो जाये तो उस साधन को अनुमान प्रमाण कहते हैं । यह भी प्रत्यक्ष के आधार पर होता है ।
उदहारण :-
(१) जैसे अग्नि और ऊष्मा ( गर्मी ) का सम्बन्ध है जो कभी छूट नहीं सकता । जहाँ ऊष्मा होगी वहाँ अग्नि तत्व होगा और जहाँ अग्नि होगा वहीं पर ऊष्मा होगी । यानी कि एक के होने से दूसरे का ज्ञान हो जाना ।
(२) जैसे उत्पत्ति और नाश का परस्पर सम्बन्ध है । जहाँ उत्पत्ति होगी वहाँ नाश भी होगा । और जहाँ नाश होगा वहाँ उत्पत्ति भी अवश्य ही होगी ।
(३) जैसे कार्य और कारण का परस्पर सम्बन्ध है जो कभी भी छूटता नहीं । जहाँ कार्य होगा वहीं उसका कारण भी होगा, जहाँ कारण होगा वहीं उसके कार्य की भी सम्भावना होगी ।
(16) प्रश्न :- अनुमान प्रमाण के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर :- अनुमान प्रमाण के तीन प्रकार हैं :- (१) पूर्ववत (२) शेषवत (३) सामान्यतोदृष्ट ।
(17) प्रश्न :- पूर्ववत अनुमान प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- पूर्ववत अनुमान प्रमाण उस साधन को कहते हैं कि जिसके द्वारा कार्य को देख कर कारण का ज्ञान हो जाये ।
उदहारण :-
(१) पुत्र को देख के पिता का ज्ञान हो जाना ।
(२) वृक्ष को देख कर उसके बीज का ज्ञान हो जाना ।
(३) वर्षा को देख कर मेघों का ज्ञान हो जाना ।
(४) धूएँ को देख कर अग्नि का ज्ञान हो जाना । ( इसलिये तो कहते हैं कि बिना आग के धूँआ भी नहीं उठता )
(18) प्रश्न :- शेषवत अनुमान प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- शेषवत अनुमान प्रमाण उस साधन को कहते हैं कि जिसके द्वारा कारण को देख कर कार्य के होने का ज्ञान हो जाये ।
उदहारण :-
(१) पिता को देख उसके पुत्र का ज्ञान हो जाना ।
(२) बीज को देख कर उसके होने वाले वृक्ष का ज्ञान हो जाना ।
(३) मेघों को देख उनसे होने वाली वर्षा का ज्ञान हो जाना ।
(४) अग्नि को देख कर उससे होने वाले धूएँ का ज्ञान हो जाना ।
(19) प्रश्न :- सामान्यतोदृष्ट अनुमान प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- सामान्यतोदृष्ट अनुमान प्रमाण कहते हैं उस साधन को कि जब एक के साथ दूसरी दूसरी के साथ तीसरी लड़ी जुड़ती है । जैसे नदी जब ऊफान पर हो तो अनुमान होगा कि कहीं वर्षा हुई होगी । और वर्षा तब होगी जब बादल हुए होंगे । तो ऐसे ही एक के बाद दूसरे का ज्ञान होते जाना ही सामान्यतोदृष्ट का फल है ।
(20) प्रश्न :- शब्द प्रमाण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब कोई विषय किसी आप्त के द्वारा कथन किया गया हो तो उस विषय में जो ज्ञान दूसरों को होता है वह शब्द ज्ञान कहलाता है और वह ज्ञान प्राप्त करने का साधन शब्द प्रमाण है ।
(21) प्रश्न :- आप्त किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब किसी भी विषय का किसी व्यक्ति ने साक्षात्कार कर लिया हो, और वह व्यक्ति उस विषय में बहुत सीमा तक निपुण हो गया हो तो वह उस विषय में आप्त कहा जायेगा । और जो वह व्यक्ति अपने उस विषय में कथन करेगा वह सत्य होगा ।
उदहारण :-
(१) ऋषि पाणीनि ने शब्द ज्ञान का साक्षात्कार किया तो वह व्याकरण में आप्त माने गये ।
(२) ऋषि चरक ने आयुर्वेद का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त किया तो वह उसमें आप्त माने गये ।
(३) ऋषि पतञ्जली ने योग विद्या का समाधी ज्ञान प्राप्त किया तो वह उस विषय में आप्त कहे गये ।
(४) ऋषि गौतम ने तर्क प्रणाली का ज्ञान प्राप्त किया और वह तर्कयुक्त न्याय में आप्त कहे गये ।
(५) ऋषि कपिल ने प्रकृति और उसके कार्यों का ज्ञान प्राप्त किया और वह सांख्य में आप्त माने गये ।
समस्त वेद और वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( जो स्थित प्रज्ञ मुनियों के रचे हैं ) उनको हम आप्त उपदेश अर्थात शब्द प्रमाण कहते हैं ।
(22) प्रश्न :- प्रमाणों के द्वारा हम किन किन विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर :- प्रमाणों के द्वारा हम सृष्टि के सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । परा और अपरा विद्या दोनों में प्रमाणों का प्रयोग करते हैं ।
(23) प्रश्न :- प्रमाण इतने ही हैं या और भी हैं ?
उत्तर :- प्रमाण तो अनेकों हो सकते हैं, परन्तु सृष्टि के समस्त पदार्थ इन तीनों के अन्तर्गत आ जाते हैं । तो अधिक की आवश्यक्ता नहीं है ।
(24) प्रश्न :- पदार्थ का विवेचन करने की प्रक्रिया क्या है ?
उत्तर :- पदार्थ का विवेचन तीन प्रकार से होता है :- (१) उद्देश (२) लक्षण (३) परीक्षा ।
(25) प्रश्न :- उद्देश किसे कहते हैं ?
उत्तर :- किसी भी पदार्थ को जब संकेत करते हैं । तो उसे उसका उद्देश कहते हैं । जैसे :- ये श्वेत वर्ण की गाय है । तो वह पदार्थ गाय है । यह उसका उद्देश हुआ ।
(26) प्रश्न :- लक्षण किसे कहते हैं ?
उत्तर :- किसी भी पदार्थ के स्वाभाविक धर्म को उसका लक्षण कहते हैं । जैसे :- गाय के श्रींङ् ( सींघ ) होते हैं, चार थन होते हैं, वृहद पूँछ होती है । तो यह सब गाय के लक्षण हुए जो उसको बाकी सब पशुओं से भिन्न करते हैं ।
(27) प्रश्न :- परीक्षा किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब पदार्थ के उस धर्म की विवेचना की जाती है, कि उक्त लक्षण उस पदार्थ में घटता भी है या नहीं ? तो इसी को हम उसकी परीक्षा कहते हैं ।
(28) प्रश्न :- प्रमाणों के विषय में सूक्ष्मता से जानने के लिये क्या करें ?
उत्तर :- प्रमाणों के बारे में विस्तार से जानने के लिये गौतम मुनि कृत न्याय शास्त्र पढ़ना चाहिये । ताकि हम सत्य और असत्य का विचार करने में दक्ष हों और सत्य पर चलने का मार्ग प्रशस्त हो ।
ओ३म
……..Dinesh Sharma


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