Tuesday, April 5, 2016

ओ३म्🌻🌻🌻 🌷अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद🌷 जब अधर्म की वृद्धि हो जाती है और धर्म का ह्रास होता है,तब...

ओ३म्🌻🌻🌻

🌷अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद🌷

जब अधर्म की वृद्धि हो जाती है और धर्म का ह्रास होता है,तब ईश्वर अवतार धारण करता है,ईश्वर इस धराधाम पर अवतार लेता है।इसकी पुष्टि में लोग गीता के निम्न श्लोक को बताते हैं:-
यदा यदा हि धर्मस्यग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
(गीता ४/७)
श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि जब जब धर्म की हानि होती है तथा,अधर्म,अनाचार व अत्याचार बढ़ जाता है,तब तब मैं शरीर धारण करता हूं।

यह विचारधारा वेद के प्रतिकूल तो है ही,स्वयं गीता और श्रीकृष्ण के सिद्धान्तों के भी प्रतिकूल है।इतना ही नहीं,इन श्लोंको पर तनिक विचार करने से ही यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि इन श्लोकों से अवतारवाद सिद्ध नहीं होता।

चारों वेदों में एक भी मन्त्र ऐसा नहीं है,जहाँ ईश्वर को शरीरधारी कहा हो।वेद में तो ईश्वर को ‘अकायमस्नाविरम्’ (यजु० ४०/८) शरीर और नस-नाड़ी के बन्धन से रहित कहा गया है।अन्यत्र उसे 'अजः’ (ऋग्० ७/३५/१३)
कभी जन्म न लेने वाला कहा गया है।उपनिषदों में भी ईश्वर का ऐसा ही स्वरुप वर्णित किया है।

श्रीकृष्ण अत्यन्त,उद्योगी,पुरुषार्थी व परिश्रमी महापुरुष थे।उनका तो उपदेश था:-

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं ह्रदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ।।-(गीता २/३)
श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कह रहे हैं:-
नपुंसक,कायर एवं भीरु मत बन।यह तेरे योग्य नहीं है।हे शत्रुओं को सन्ताप देने वाले! ह्रदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए ,जीवन-संग्राम में संघर्ष के लिए खड़ा हो जा।

श्रीकृष्ण ने गीता का जो उपदेश दिया वह इतना विस्तृत नहीं हो सकता।युद्ध के अवसर पर जहाँ दोंनो सेनाएं युद्ध के लिए तैयार खड़ी हैं और युद्ध आरम्भ होने वाला है,वहाँ इतने लम्बे व्याख्यान का अवसर कहां?श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया था वह तो गीता के दूसरे अध्याय के ३८वें श्लोक तक प्रायः समाप्त हो जाता है।युद्ध के अवसर पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की अमरता का सन्देश देकर उसे युद्ध में प्रवृत्त कराया था। आत्मा की अमरता का सन्देश ही गीता का सार और प्राण है।

जब भारत में नाना पन्थ और मत फैले तो हमारे सभी ग्रन्थों में मिलावट की गयी।गीता भी इस मिलावट से अछूती न रह सकी।प्रत्येक मतवादी ने अपने अभिप्राय के अनुकूल श्लोकों की रचना कर उन्हें इसमें मिला दिया।इस प्रकार सत्तर श्लोकों की गीता सात सौ श्लोकों की हो गयी।

श्रीकृष्ण वेद और वेदांगों के मर्मज्ञ थे।वे वेदविरूद्ध बातों का उपदेश नहीं कर सकते,अतः यह निश्चितरुप से कहा जा सकता है कि उपर्युक्त लोक अवतारवाद के प्रचलित हो जाने के पश्चात गीता में प्रक्षिप्त किये गये हैं।

ऊपर उदधृत द्वितीय श्लोक में अवतार धारण करने के तीन कारण बताये गये हैं-
१.साधुओं की रक्षा,२.दुष्टों का विनाश,३.धर्म की उपासना।

यदि इन तीनों हेतुओं पर विचार किया जाये तो प्रतीत होगा कि जितने भी अवतार हुए उनमें से एक ने भी इन कार्यों को पूरा नहीं किया।

विष्णु के जितने भी अवतार हुए वे सभी छली और कपटी थे।ऐसा प्रतीत होता है कि उनका जन्म छल और कपट के लिए ही हुआ था अथवा छल और कपट का विभाग विष्णु को सौंपा हुआ था।

मोहिनी अवतार ने कौन से साधुओं की रक्षा की थी?कौन से दुष्टों को दण्ड़ दिया और कौन से धर्म की स्थापना की?हाँ,उसे देखकर शिवजी का वीर्यपात अवश्य हो गया था।

वामन भी विष्णु का अवतार माने जाते हैं।उन्होंने बली के साथ छल करने के अतिरिक्त कौन सा उत्तम कर्म किया?

परशुराम भी पौराणिकों के अवतार हैं।परशुराम ने इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार किया।क्या अवतार इसलिए होता है?बुद्ध भी पौराणिकों के अवतार माने जाते हैं।उन्होंने वेद और ईश्वर को मानने से ही इन्कार कर दिया।इसी प्रकार की करतूतें अन्य अवतारों की भी हैं।

जब हम पूछते हैं कि ईश्वर अवतार क्यों लेता है तो पौराणिक कहते हैं कि दुष्टों का संहार करने के लिए ईश्वर अवतार धारण करता है।इस उत्तर को सुनकर हँसी आती है।किसी भी वस्तु का बनाना कठिन होता है और बिगाड़ना सरल।जो ईश्वर बिना शरीर धारण किये रावण,कंस,जरासन्ध,हिरण्यकश्यपु आदि का निर्माण कर सकता है,क्या बिना शरीर धारण किये वह उनका संहार नहीं कर सकता?

कहते हैं कि प्रहलाद की रक्षा के लिए और हिरण्यकश्यपु के विनाश के लिए ईश्वर खम्भा फाड़कर प्रकट हो गया।हम पूछना चाहते हैं कि ईश्वर प्रह्लाद के भीतर था या नहीं?ईश्वर हिरण्यकश्यपु के ह्रदय में था या नहीं?उस सभा में सर्वत्र था या नहीं?जब ईश्वर सर्वव्यापक है,अणु-अणु और कण-कण में विद्यमान है तो उसका खम्बे से प्रकट होना कैसे संभव हो सकता है?प्रकट तो वह हो सकता है जो एकदेशीय हो।जब ईश्वर हिरण्यकश्यपु के ह्रदय में भी था तो अंदर से ही उसके ह्रदय को विदीर्ण कर सकता था,उसे अवतार लेने की आवश्यकता क्या थी?

एक और विडम्बना देखिये।सत्ययुग में चार अवतार हुए,त्रेता में तीन,द्वापर में दो और कलियुग में अभी तक एक भी अलतार नहीं हुआ।पौराणिकों के अनुसार कलियुग सबसे बुरा है,अतः कलियुग में सबसे अधिक अलतार होने चाहिये थे और सत्ययुग में जहाँ धर्म-ही-धर्म था,अधर्म का लेश भी नहीं था,उस समय एक भी अवतार नहीं होना चाहिये था।

एक और मजेदार बात देखिये।राम और पशरूराम दोंनो अवतार एक ही समय में हो गये।दोंनो युद्ध करने के लिए भी तैयार हो गये ,अवतार अवतार को न पहचान सका।श्रीकृष्ण,बलराम और व्यास तीनों अवतार एक ही समय में हो गये।उस समय इतने अवतारों की क्या आवश्यकता थी?

सच्ची बात तो ये है कि अवतारवाद एक ढकोसला है,एक पाखण्ड़ है।अवतारवाद की पोषक पुराणों को उठाकर देखिये,सत्ययुग,त्रेता और द्वापर में जब अधर्म बहुत ही न्यून था,पृथ्वी ने तनिक पुकार की और उसका भार उतारने के लिए ईश्वर तुरन्त अवतरित हो गये,परन्तु यदि हम आज की अवस्था का अवलोकन करें तो वर्तमान युग में सूर्योदय से पूर्व सैकड़ों गौओं और सहस्रों अन्य पशुओं के गले पर आरा फेर दिया जाता है।आज बलात्कार की घटनाओं से समाचार-पत्रों के पृष्ठ रंगे रहते हैं।प्रत्येक वस्तु में मिलावट है,चोरबजारी,रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का बाजार गर्म है।

सज्जन कष्ट में हैं और दुर्जन गुलच्छर्रे उड़ा रहै हैं,परन्तु भगवान् क्षीरसागर में लक्ष्मी के साथ विहार कर रहे हैं।आज की परिस्थितियाँ पहले से बहुत भयंकर है।हम पूछना चाहते हैं कि अब ईश्वर अवतार क्यों नहीं लेता?

१५ अगस्त १९४७ को भारत दो खण्ड़ों में विभाजित हो गया।उस समय जिस दानवता का तांड़व नृत्य हुआ उसे लिखते हुए लेखनी भी कांपती और थर्राती है।
छोटे-छोटे दुधमुंहे बच्चों को बेसन में लपेटकर तेल के खौलते कड़ाहे में ड़ाला गया।बच्चों को आकाश में उछालकर भालों की नोंक पर लिया गया।स्त्रियों के स्तनों को काटा गया।माता-पिता के समक्ष उनकी पुत्रियों से बलात्कार किया गया,उन्हें नंगा करके सड़कों और बाजारों में उनके जुलूस निकाले गये।यह सब कुछ हुआ,परन्तु ईश्वर ने अवतार नहीं लिया।

मैं अत्यन्त नम्रतापूर्वक पूछना चाहता हूं,जब ऐसी भीषण परिस्थिति में ईश्वर ने अवतार नहीं लिया तो फिर उसका अवतार कब होगा?

हे भारतवासियों!हम घोषणापूर्वक कहना चाहते हैं कि अवतारवाद एक धोखा,पाखण्ड और दम्भ है।ईश्वर कभी अवतार नहीं लेता।अवतार से रक्षा की आशा करना दुराशामात्र है।यदि आप चाहते हैं देश उन्नत हो,यदि आप चाहते हैं कि आप अपने पूर्व गौरव और वैभव को पुनः प्राप्त करें,यदि आप चाहते हैं कि आपका देश समृद्ध हो,यदि आप चाहते हैं कि देश से दुराचार और पाखण्ड समाप्त हो तो ईश्वर के अवतार धारण करने की आशा छोड़ दीजिये.ईश्वर अवतार नहीं लेता।आप स्वयं अपने जीवन में आत्मविश्वास,ज्योति,जागृति उत्पन्न कीजिये।अपने बाहुबल का आश्रय लेकर घोर उद्योग के लिए कमर कसकर खड़े हो जाइये
लौट चलो वेदो की ओर


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