Saturday, June 10, 2017

*लोग कहते हैं शूद्र छोटे होते हैं ?* ⛲🗼⛲🗼⛲🗼⛲🗼⛲🗼 *—-आर्यपुत्र निगमेंद्र* ➡ लोग तो घमंड,...

*लोग कहते हैं शूद्र छोटे होते हैं ?*

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*—-आर्यपुत्र निगमेंद्र*

➡ लोग तो घमंड, आलोचना, नशा आदि दुर्गुणों को भी तुच्छ बोलते हैं, लेकिन तुच्छ बोलकर भी लोग इन्हें सिर आंखों पर बैठाकर कर रखते हैं। शायद इसके बिना किसी मनुष्य का गुजारा भी नही चलता है। लोगो का क्या कुछ भी बोल दें।

लेकि शूद्रों का महत्व जानने के लिए हमे इसके उद्भव तक जाना होगा। लोगो ने शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण नही बनाये। जिसने बनाये उसने इन्हें किस रूप में परिभाषित किया ? किस रूप में इनकी महत्ता का बखान किया, ये समझने - सोचने की आवश्यकता है पहले। प्रकृति मनुष्यो को 4 गुणों में विभाजित करती है और गुणों के आधार पर ही 4 अलग अलग भागों के अलग अलग नाम रखे गए। चारों का अपना अपना महत्व है समाज के लिये।

*चारों वर्णों को ऊँचा-नीचा, छोटा- बड़ा के आधार पर विभाजित नही किया गया जैसा की आज लोग समझते हैं।* और ब्राह्मण अपने को उच्च सिद्ध करने में लगे रहते है और क्षत्रिय लोग भी।

*चारों वर्णों को ही अपने गुण धर्म के आधार पर समाज- देश के लिए विशेष योगदान देना होता है। मानव समाज इन चारों वर्णों के समान योगदान के बिना संतुलित रूप में कभी नही चल सकता। पूरे मानव समाज की रीढ़ हैं चारो वर्ण। सबका अपना अपना दायित्व है देश और समाज के लिए।*

*1——-* सर्वप्रथम मानव समाज को ईश्वर प्रदत्त धर्म के सत्य ज्ञान आदि से शिक्षित कर उन्हें सभ्य, सुशील, श्रेष्ठ, पुरुषार्थी,सुसंस्कृत, धार्मिक बनाने का सेवा कार्य करने वाले ब्राह्मण कहे जाएंगे। चाहे वो कोई भी व्यक्ति हो, किसी भी वर्ण या कुल में पैदा हुआ हो।

*2——-* द्वितीय मानव समाज और राष्ट्र की रक्षा करने, जनकल्याण करने, सबके हितों की रक्षा करने, न्याय व्यवस्था को बनाये रखने, धर्म स्थापना में सहयोग करने और देश और समाज की उन्नति के लिए नित्य सेवा कार्य करने वाले क्षत्रिय कहे जाएंगे।

*3—–* मानव समाज व देश की सेवा करने वाले, प्रत्येक ब्राह्मण, क्षत्रियों और वैश्यों के सेवा कार्यो में सहयोग करने वाले, प्रत्येक उद्यम में श्रम योगदान द्वारा सेवा कार्य करने वाले शूद्र कहे जाएंगे।

*4——-* राष्ट्र व मानव समाज की अर्थ व्यवस्था को चलाने वाले, उद्योग, व्यापार कर मनुष्यो के आवश्यक पदार्थो व वस्तुओं की पूर्ति करने वाले, अनाज, वस्त्र, भवन आदि निर्माण कर सेवा कार्य करने वाले वैश्य कहे जाएंगे।

💧 *निष्कर्ष —–* इन चार वर्णों को मनुष्य शरीर से तुलना कर समझाया गया है कि मुख- मस्तिष्क ज्ञान का द्योतक है। सो मुख ब्राह्मण है। यही इसका मुख्य सेवा धर्म है।
शरीर की भुजाएं द्वारा ही बलपूर्वक कार्य सम्पन्न किया जाता है अतः भुजा ही क्षत्रिय है।
पेट मे अग्नि पाचन स्थान है जहाँ से पूरे शरीर को जीवित रहने के लिए आवश्यक ऊर्जा शक्ति प्राप्त होती है। इसके बिना मुख, भुजा और पांव सब निष्क्रिय हो जाएंगे। अतः पेट को वैश्य कहा गया है।
अब सबसे मुख्य आधार शरीर का पाँव होता है, जिसकी आधारशिला पर मुख, भुजा, पेट टिके होते हैं, मानव समाज रूपी शरीर इसी के दम पर सार्थक कार्य कर सकने में सक्षम होते हैं। अतः पाँव को शुद्र कहा गया है।

अब ये कहना कि शूद्र छोटे और ब्राह्मण- क्षत्रिय बड़े होते हैं और क्षत्रिय- ब्राह्मण के पाँव छूने चाहिए तो इसमें भी महत्व शूद्रों का ही तो बताते हैं। क्योंकि शूद्र ही तो पाँव है और पाँव ही शूद्र है तो अंततः सदा पाँव पर शीश (ब्राह्मण) शीश ही झुकता है और सदा चरण छूने को भुजाएँ ( क्षत्रिय ) ही आगे बढ़ती हैं। चरण पादुका आज भी वंदनीय व सम्मानीय हैं हमारी आर्य संस्कृति में। पेट कभी किसी की तरफ नही झुकता है क्योंकि वह सबके लिए बराबर अपरिहार्य है, सबके बीच संतुलन बनाये रखने का कार्य वैश्य का ही है।

*अब यदि क्षत्रिय और ब्राह्मण शूद्र को अज्ञानवश छोटा समझें तो उन्हें पाँव पर झुकने की बात का स्मरण कर लेना चाहिए।* जिसके बिना मनुष्य जीवन जीने की कल्पना भी नही कर सकता। किसी भवन की बुलंदी का आधार उसकी बुनियाद होती है और जब बुनियाद कमजोर पड़ती है तब बड़ा से बड़ा बहुमंज़िल भवन भी मिट्टी के ढेर के समान ढह जाता है। शूद्र की यही महानता है आर्य संस्कृति में। जिसे त्याग कर लोगो ने हिन्दू पंथ स्वीकार कर लिया है जिसने वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था में परिवर्तित करके आपस मे ही भेदभाव करना शुरू कर दिया। आज हिन्दू पंथ समाज मे जितनी भी कुरुतियां और बुराइयाँ व्याप्त हैं वे सबकी सब 1000 वर्षों के भीतर ही विकसित की गई हैं। इनका प्राचीन आर्य संस्कृति और वैदिक धर्म से दूर दूर तक कोई सरोकार संबंध नही है।

*अतः विद्वानजनो से यही आग्रह है मेरा यदि अपना खोया हुआ वैभव, सुख, संपदा, शांति, प्रेम, सौहार्द पाना चाहते हैं तो सबको साथ लेकर वैदिक धर्म और आर्य सभ्यता संस्कृति को अंगीकार करें, अपने जीवन मे उसे उतारें, परिवार को वेद ज्ञान देकर सुसंस्कृत करें। वर्ण व्यवस्था को ग्रहण कर सरनेम बताने में और यथा सम्भव प्रयोग करने से बचें। शूद्र जन लोग अपमान बोध से बाहर निकलकर गर्व सम्मान से अपना महत्व समझें और सबको बताएं। और यदि कोई श्रेष्ठ कर्म करने में दक्ष होते हैं तो स्वयं को ब्राह्मण, वैश्य अथवा क्षत्रिय बताएं।*

*यथा गुण तथा वर्ण*

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*8/6/2017*
⛳ *आर्य विचार* ⛳


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