Friday, June 23, 2017

जैसे शरीर में मुख होता है जिसके तेजवान , ओजपूर्ण होने से शरीर की शोभा बढ़ती है जहाँ ज्ञानेन्द्रिया...

जैसे शरीर में मुख होता है जिसके तेजवान , ओजपूर्ण होने से शरीर की शोभा बढ़ती है जहाँ ज्ञानेन्द्रिया होती है सर्दी में सबकुछ ढकते है पर कोई मुख का ढक्कन नही माँगता , वैसे ही समाज में ब्राम्हण होना चाहिए व्रती , ब्रम्हचारी ,तेजवान , प्रत्येक दशा में ज्ञानार्जन कर ज्ञानर्पण करने वाला ।

जैसे शरीर में भुजाये होती है जिसके मजबूत होने से विपक्षी भय खाता है चाहे मुख पर वार हो या पैर में काटा लगे भुजाएं रक्षार्थ आती है वैसे ही समाज में बलशाली महारथी क्षत्रिय होने चाहिए ।

जैसे शरीर में उदर( पेट ) होता है जिसकी पाचन शक्ति से मुख हो या भुजाएं या पैर सबमे शक्ति आती है जो पौष्टिकता को बिना भेदभाव् किये सारे शरीर में बाटता है , ऐसे होने चाहिए समाज में दानवीर वैश्य ।

जैसे शरीर में पैर होते है जिनकी मजबूती से शरीर को मजबूत संतुलन मिलता है जिसके तेज से शरीर तेजगामी होता है जिसके बिना उदर हो या भुजाएं या मुख स्थान तक परिवर्तित नही कर सकते है ऐसे होने चाहिए समाज में तेजवान , वेगवान शुद्र ।

जिस प्रकार मुख , उदर , भुजाओं , पैरों के महान सामंजस्य से सुंदर शरीर का निर्माण व् सञ्चालन होता है वैसे ही ब्राम्हण , क्षत्रिय , वैश्य व् शुद्र के महान सामंजस्य से सुंदर समाज का निर्माण होना चाहिए ।
विशेष ध्यान रहे अंगों ( वर्ण ) की पहचान उसका कार्य है ।

यही है वैदिक वर्ण व्यवस्था यही है आर्यसमाज की कामना ।


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