Sunday, August 5, 2018

*।।ओ३म्।।**स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्यात्-(७)*श्रावणमास अष्टमी कृ.प. २०७५ वि.सं.*यो विश्वस्य जगतः...

*।।ओ३म्।।*

*स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्यात्-(७)*


श्रावणमास अष्टमी कृ.प. २०७५ वि.सं.



*यो विश्वस्य जगतः प्राणतस्पतिर्यो ब्रह्मणे प्रथमो गा अविन्दत् ।*

*इन्द्रो यो दस्यूँरधराँ अवातिरन्मरुत्वन्तं सख्याय हवामहे॥*

ऋ० १।७।१२।५



*व्याख्यान-* हे मनुष्यो! *“यः”* जो सब *“विश्वस्य जगतः”* जगत् (स्थावर), जड़, अप्राणी का और *“प्राणत:”* चेतनावाले जगत् का *“पतिः”* अधिष्ठाता और पालक है तथा *“प्रथमः”* जो सब जगत् के प्रथम सदा से है और *“ब्रह्मणे, गाः, अविन्दत्”* जिसने यही नियम किया है कि ब्रह्म, अर्थात् विद्वान् के लिए पृथिवी का लाभ और उसका राज्य है और जो *“इन्द्रः”* परमैश्वर्यवान् परमात्मा *“दस्यून्”* डाकुओं को *“अधरान् ”* नीचे गिराता है तथा उनको *“अवातिरत्”* मार ही डालता है। *“मरुत्वन्तं,सख्याय, हवामहे”* आओ मित्रों ! भाई लोगों ! अपन सब सम्प्रीति से मिलके मरुत्वान्, अर्थात् परमानन्त बलवाले इन्द्र-परमात्मा को सखा होने के लिए प्रार्थना से अत्यन्त गद्गद होके बुलावें। वह शीघ्र ही कृपा करके अपन से सखित्व (परम मित्रता) करेगा,

इसमें कुछ भी सन्देह नहीं ।




महर्षि दयानंद सरस्वतीविरचित-

*आर्याभिविनय* से

प्रस्तुति- *राजीव*


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