Monday, August 27, 2018

नमस्ते जी*वायुसन्निकर्षेप्रत्यक्षाभावाद् दृष्टंलिङ्ग न विद्यते।। १५ ।। ( २ -१ )अर्थात त्वक् इन्द्रिय...

नमस्ते जी

*वायुसन्निकर्षेप्रत्यक्षाभावाद् दृष्टंलिङ्ग न विद्यते।। १५ ।। ( २ -१ )

अर्थात त्वक् इन्द्रिय के साथ वायु का सन्निकर्ष होने पर भी उसका प्रत्यक्ष नही होता, इसलिए उक्त स्पर्श दृष्टलिङ्ग नही है, किन्तु अदृष्टलिङ्ग है अर्थात लिङ्ग तथा लिङ्गी दोनों का प्रत्यक्ष लिङ्ग के दृष्ट होने में प्रयोजक है, जैसे गोव्यक्ति में गोत्त्व लिङ्गी तथा विषाणादि लिङ्ग के प्रत्यक्ष होने से विषाणादि दृष्टलिङ्ग तथा महानसादि ( पाकशाला व रसोईघर ) में धूम और वन्हि ( अग्नि ) के प्रत्यक्ष होने से धूम दृष्टलिङ्ग होता है वैसे स्पर्श नही होता, क्योंकि त्वक् इन्द्रिय से उसका प्रत्यक्ष होने पर भी लिङ्गी वायु का प्रत्यक्ष नही होता, अतः वह अदृष्टलिङ्ग है दृष्टलिङ्ग नही है।

भाव यह है कि *विषयतासम्बन्धेन वर्हिद्रव्यप्रत्यक्ष त्वावच्छिन्नम्प्रति समवायसम्बन्धेन महत्वविशिष्टोद्भूतरूपस्य कारणत्वं* अर्थात विषय के साथ इन्द्रिय के सम्बन्ध का नाम *विषयतासम्बन्ध* है, महत्परिमाण के साथ एक अधिकरण में रहनेवाले उद्भुत को *महत्त्वविशिष्टोउद्भुतरूप* कहते है, विषयतासम्बन्ध द्वारा घट-पटादि बाह्य द्रव्यों के प्रत्यक्ष में समवाय सम्बन्ध से महत्त्व विशिष्टो उद्भूतरूप कारण है अर्थात *यत्र यत्र समवायसम्बन्धेन वहिर्द्रव्यप्रत्यक्षत्वम्* अर्थात जंहा जंहा समवाय सम्बन्ध से महत्त्वविशिष्टोउद्भूतरूप होता है वंहा विषयता सम्बन्ध द्वारा बाह्यद्रव्य का प्रत्यक्ष होता है यह नियम है, जैसा कि *अयं घट:* यह घट है, इस प्रकार घट का प्रत्यक्षज्ञान आत्मा में समवायसम्बन्ध से और घट में विषयतासम्बन्ध से है, क्योंकि उक्त ज्ञान का समवायिकारण आत्मा तथा घट विषय है और घट में *महत्त्वविशिष्टोउद्भुतरूप* समवाय सम्बन्ध से रहता है, इसलिए वह घटरूप बाह्यद्रव्य के प्रत्यक्ष में कारण है परन्तु वायु में उक्त रूप के न होने से उसका प्रत्यक्ष नही होता और उसके प्रत्यक्ष न होने से वायुवृत्ति स्पर्श के प्रत्यक्ष होने पर भी दृष्टलिङ्ग नही होता।

तात्पर्य यह है कि चक्षु:, त्वक् तथा मन इन तीन इंद्रियों से द्रव्य का प्रत्यक्ष होता अन्य से नही अर्थात घ्राण,रसना तथा श्रोत्र से केवल गुण का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नही और बाह्यद्रव्य का प्रत्यक्ष चक्षु: वा त्वक् दोनों से होता है अर्थात जिस द्रव्य में “महत्त्वविशिष्टउद्भूतरूप” है उसका उक्त दोनों इंद्रियों से प्रत्यक्ष होता है अन्य का नही और वायु में उक्त दोनों के न पाये जाने से उसका चक्षु: वा त्वक् से प्रत्यक्ष नही होसक्ता किन्तु वह स्पर्शरूप अदृष्टलिङ्गद्वारा अनुमेय है, इसप्रकार वायु के प्रत्यक्ष न होने से उक्त स्पर्श के प्रत्यक्ष होने पर भी वह अदृष्टलिङ्ग है।


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