Wednesday, August 29, 2018

◙ *दुनिया में इतनी अशांति / धांधली क्यों है?* _____________________________ईसाई जगत की मान्यता रही...

◙ *दुनिया में इतनी अशांति / धांधली क्यों है?*

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ईसाई जगत की मान्यता रही है कि बाईबल “ईश्वरीय वचन” है, और वे इसे परमेश्वर के शुभ समाचार के रूप में ही प्रचारित करते रहे है. बाईबल स्वयं भी कहती है कि, “All scripture is inspired by God…” अर्थात् “समस्त धर्मशास्त्र (बाईबल) की रचना परमेश्वर की प्रेरणा से हुई है…” (2 Timothy 3:16) जैसे मुसलमान लोग “इस्लाम शांति का मजहब है”, “मजहब के मामले में कोई जबरदस्ती नहीं” आदि टाईप के “अल-तकिया” का इस्तेमाल कर इस्लाम के वास्तविक चरित को छुपाकर गैर-मुस्लिमों में भ्रम फैला रहे है, उसी तरह “पर्वत पर उपदेश” (Sermon on the Mount) वाले यीशु के कुछ वचनों की आड में ईसाई लोग ठिक वही करते रहे है. “But I say to you, ‘Do not resist an evildoer. But if anyone strikes you on the right cheek, turn the other also…’” अर्थात् “किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि दुष्ट का विरोध मत करो, वरन् जो तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड मारे तो उसके आगे दूसरा गाल भी फेर दो…” (Matthew 5:39) और “If anyone strikes you on the cheek, offer the other also; and from anyone who takes away your coat do not withhold even your shirt.” अर्थात् “यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड मारे तो उसके आगे दूसरा गाल भी धर दो, और यदि कोई तुम्हारा कोट छिन ले तो उसे तुम्हारा शर्ट भी दे दो”. (Luke 6:29)

ये उपदेश अव्यवहारू (impractical) होने के बावजूद, निस्सन्देह एक सीमा तक अहिंसा के लिए यह अच्छा उपदेश है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि ये वचन यीशु के अपने मौलिक है क्योंकि यीशु से सदीयों पूर्व लाओ-त्से और महात्मा बुद्ध द्वारा भी यही कहा गया था. और वैसे भी यीशु के इन वचनो का उनके ईसाई / मसीही अनुयायीयों ने कितना पालन किया इसका साक्षी पिछले 2000 सालों का ईसाईयत का काला व् क्रूर इतिहास है!! सवाल यह भी है कि क्या स्वयं यीशु ने भी इन उपदेशों का पालन किया था? यदि यीशु वास्तव में अहिंसा, प्रेम, सद्भाव और शांति की प्रतिमूर्ति था, जैसा कि प्रचारित किया जाता है, तो निम्नलिखित वचन किसके है?

▪ “I came to bring fire to the earth, and how I wish it were already kindled! Do you think that I have come to bring peace to the earth? No, I tell you, but rather division! From now on five in one household will be divided, three against two and two against three; they will be divided: father against son and son against father, mother against daughter and daughter against mother, mother-in-law against her daughter-in-law and daughter-in-law against mother-in-law.” अर्थात् “मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूँ, और मैं चाहता हूँ कि यह अभी सुलग जाए. क्या तुम समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शांति स्थापित करने आया हूँ? मैं कहता हूँ ‘नहीं’, वरन् विभाजन करने आया हूँ. क्योंकि अब से एक ही परिवार के पांच सदस्य एक-दूसरे के विरुद्ध हो जाएगे – दो के विरुद्ध तीन और तीन के विरुद्ध दो. वे एक-दूसरे का विरोध करेंगे - पिता पुत्र का और पुत्र पिता का, माता पुत्री का और पुत्री माता का, सास बहू का और बहू सास का (विरोध करेंगे). (Luke 12:49,51-53)

▪ “Do not think that I have come to bring peace to the earth; I have not come to bring peace, but a sword. For I have come to set a man against his father, and a daughter against her mother, and a daughter-in-law against her mother-in-law; अर्थात् “यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर शांति स्थापित करने आया हूँ; मैं शांति स्थापित करने नहीं आया हूँ, वरन् मैं विभाजन करने वाली तलवार के साथ आया हूँ. मैं पुत्र को अपने पिता के विरुद्ध, पुत्री को अपनी माता के विरुद्ध, और बहू को अपनी सास के विरुद्ध खडा करने आया हूँ. (Matthew 10:34-35)

और सम्भवतः लोगों कि बीच यह फुट डालने के और एक-दूसरे दुश्मन बनाने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही आगे और उपदेश दिए है…

▪ “And the one who has no sword must sell his cloak and buy one” अर्थात् “और जिसके पास तलवार नहीं है उसे अपना वस्त्र (अंगरखा) बेचकर भी तलवार मोल लेनी चाहिए”. (Luke 22:36)

▪ “Whoever is not with me is against me” अर्थात् “जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है”. (Luke 11:23)

“वस्त्र (अंगरखा) बेचकर भी तलवार मोल लेनी चाहिए!!” – पर क्यों? सब्जी काटने के लिए?, और “जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है!!” – कैसे? क्या “किसी के साथ न होना / किसी का साथ न देना” और “उनके विरोध में होना” एक ही बात है?

ईसाई जगत में यीशु विषयक और यीशु की भविष्यवाणीयों के बारे में बडे बडे दावे किये जाते रहे है, लेकिन इस विषय के विद्वानों ने, विशेषकर पिछले 200-250 वर्षों में, उन तथाकथित भविष्यवाणीयों की असलियत दुनिया के सामने रख दी है, लेकिन ईसाई लोग इस तथ्य पर बिना किसी विरोध का सामना किए अपना दावा कर सकते है कि उपर दिए गए Luke 12:49, 51-53 और Matthew 10:34-35 वाले उद्धरणों में यीशु द्वारा कहे गए शब्द शत प्रतिशत सच साबित हुए है!! प्रारम्भ से लेकर आधुनिक काल तक ईसाईयत का पूरा इतिहास इस तथ्य का ठोस गवाह है।


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