Thursday, March 12, 2015

जैसा संग होता है वैसा ही आपका रंगढंग होता है अर्थात जैसे आचरण वाले व्यक्ति का संग करेंगे अपना आचरण...

जैसा संग होता है वैसा ही आपका रंगढंग होता है अर्थात जैसे आचरण वाले व्यक्ति का संग करेंगे अपना आचरण भी वैसा ही होगा इसलिए ईश्वर ने हमें वेदों द्वारा यह आज्ञा दी है, की हम विद्वानों के संग ज्यादा से ज्यादा समय बिताये, समय समय पर उनसे ज्ञान वर्धन करें


विद्वानों का संग होने से मानसिक उन्नति संभव है, अन्यथा खराब संग होने से इंसान की नियत भी खराब होने लगती है, इसलिए जितना हो सके विद्वानों को अपने घर बुलाये उनका सत्कार करें, और उनसे नया नया ज्ञान लेते रहे औ अपने बच्चों को भी विद्वानों का संग करने के लिए प्रेरित करें


यजुर्वेद ३-५१ (3-51)


अक्ष॒न्नमी॑मदन्त॒ ह्यव॑ प्रि॒या अ॑भूषत । अस्तो॑षत॒ स्वभा॑नवो॒ विप्रा॒ निवि॑ष्ठया म॒ती योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥३-५१॥


भावार्थ:- मनुष्यों को उचित है कि प्रतिदिन नवीन-नवीन ज्ञान वा क्रिया की वृद्धि करते रहें। जैसे मनुष्य विद्वानों के सत्संग वा शास्त्रों के पढ़ने से नवीन-नवीन बुद्धि, नवीन-नवीन क्रिया को उत्पन्न करते हैं, वैसे ही सब मनुष्यों को अनुष्ठान करना चाहिये।।


अपने बच्चों को वेदों से अवश्य अवगत कराये, आज की युवा पीढ़ी को वेदों की और आकर्षित करवाए यही समय की जरुरत है, अन्यथा ये पाश्चात्य संस्कृति इस देश की संस्कृति को भ्रष्ट कर देगी नष्ट कर देगी

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