वैदिक बनो।
एक पुरानी घटना है।एक गांव था जिसमें दो मित्र रहते थे। राम और
श्याम। राम के पिता साहूकारी का व्यापार करते थे जबकि श्याम के पिता किसान का कार्य करते थे।
रामके पिता पौराणिक विचारों के थे जबकि श्याम के पिता ने गीता,सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा हुआ था ।
दोनों मित्र आम केबाग में गए और कच्चे आम तोड़ कर खाने लगे। थोड़ी देर
में प्यास लगी। बाग़ में जो माली था उसका नाम अब्दुल्लाह था। अब्दुल्लाह के घड़े का दोनों ने पानी पी लिया।जैसे ही पानी पिया दोनों ने अब्दुल्लाह को आते देखा। अब्दुल्लाह बोला आप दोनों गैर मुस्लिम हो और आप दोनों ने
मुस्लमान के घड़े का पानी पिया हैं इसलिए आप दोनों अब हिन्दू नहीं रहे। आप दोनों को इस्लाम की दावत देता हूँ। दोनों लड़के रोते पीटते घर
भागे। दोनों को कुछ समझ में नहीं आया। अपने अपने परिवार वालो को बताया। राम के पिता सर पकड़ कर बैठ गए और मंदिर के
पंडित से समाधान पूछने गए। मंदिर का पंडित पहले तो बोला जो हमारे
यहाँ से गया वह वापिस नहीं आ सकता।
तुम्हारा लड़का अब कभी हिन्दू नहीं कहला सकता। पर जब राम के पिता ने बोला पंडित जी कोई तो उपाय होगा। तब मोटी असामी देख पंडित जी बोले
हरिद्वार लेकर जाना पड़ेगा ,गंगा में डुबकी लगेगी, ४० ब्राह्मणों को भोजनकरवाना पड़ेगा , ऊपर से दान-दक्षिणा अलग लगेगी, तब
कहीं जाकर प्रायश्चित होगा। राम के पिता ने पूछा पंडित जी कितना खर्च होगा। पंडित जी ने सोच विचार कर 30-40 हज़ार का खर्च बता दिया। राम के पिता सर पकड़कर बैठ गए।
उधर श्याम अपने पिता के पास पहुँचा। उन्हें सब बात कह सुनाई।
श्याम के पिता ने पूछा कितना पानी पिया था। श्याम ने
बोला एक लौटा। तभी श्याम के पिता ने दो लौटे
पानी मंगवाए और श्याम को पिला दिए। 10 मिनट में एक
लौटा भर पिशाब श्याम को उतर गया। पिशाब उतरते
ही श्याम के पिता ने कहा “लो निकल गया अब्दुल्लाह
के घड़े का पानी”। अब कोई पूछे तो कह
देना की अब्दुल्लाह के घड़े का पानी तो नाली में बह गया। अरे
पानी कोई अब्दुल्लाह का थोड़े ही हैं वह तो ईश्वर का दिया हुआ हैं चाहे
किसी भी घड़े में भर लो।
वेद के अज्ञानी डरपोक, धर्मभीरु,अंधविश्वासी, अज्ञानी, अव्यवहारिक हैं
जबकि वैदिक लोग वीर, ऊर्जावान,राष्ट्रवादी, ज्ञानी एवं समाज सुधारक हैं।
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