एक बार सौभरि ऋषि अपने आश्रम में वेद मन्त्रों का पठन पाठन क़र रहे थे। पवित्र वेद मंत्रों के शब्द हमारे घर,आँगन और सभी जगहों पर भ्रमण करने से हर उस व्यक्ति को छूते हैं,जो उनके प्रभाव में आता है। शब्द अदृश्य,किन्तु शक्तिशाली हैं।
एक बार उनके आश्रम में उज्वांककेतु दैत्य आ गया । वहां तो वेद मन्त्रों का सदैव अध्ययन,गायन और मंथन होता था।सो दैत्य की प्रवृत्ति में अंतर्द्वन्द्व आ गया और वह अंधकार से प्रकाश में आ गया।पवित्र शब्दो के कवच में आकर दैत्य का मन बदल गया और ऋषि के चरणों में ही रहने लगा ।सौभरि ऋषि ने बारह वर्ष तक के अनुष्ठान किये और उससे भी कराये ।फलतः वह उज्ज्वांककेतु दैत्य भी ऋषि बन गया और वृक्ष के झड़े हुए सूखे पत्तों की भांति कुमार्ग त्याग क़र बाद में शाकल्य मुनि के नाम से विख्यात हुआ। यह था पवित्र वाणी से उच्चारित पवित्र वेद मंत्रों का प्रभाव,जिसने पूरा जीवन ही बदल कर दैत्य को ऋषि बना दिया था ।
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