Sunday, March 8, 2015

कटु सत्य—-क्या आप जानते है?? 1-साईं का असली नाम चाँद मियाँ था। 2-साईं ने कभी अपने जीवन में 2...

कटु सत्य—-क्या आप जानते है?? 1-साईं का असली नाम चाँद मियाँ था। 2-साईं ने कभी अपने जीवन में 2 गाव से बहार कदम नहीं रखा। 3-साईं सत्चारित में 10 बार से अधिक”अल्लाह मालिक” आया है। परन्तु एक बारभी ॐ नहीं आया। 4-साईं के समय में उसके आस पास के राज्यों में भयंकर अकाल पड़ा। परन्तु साईं भगवान् (भक्तो के अनुसार)ने गरीबो की मदद करना जरूरी नहीं समझा। 5-साईं का जन्म 1834 में हुआ। पर इन्होने धर्म युद्ध (आजादी की लड़ाई) में भारतीयों की मदद करना जरूरी नहीं समझा । (पता नहीं क्यों अगर ये राम कृष्ण के अवतार थे। तो इन्हें मदद करनी चाहिए थी। क्युकी कृष्ण जी का हीकहना है की धर्म युद्ध में सभी को भाग लेना पड़ता है। स्वयं कृष्ण जी ने महा भारत में पांडवो का मार्ग दर्शन किया।और वक़्त आने पर शस्त्र भी उठाया। राम जी ने भी यही किया।पर पता नहीं साईं कहा थे) 6-साईं भोजन से पहले फातिमा,कुरान पढ़ते थे। परन्तु कभी गीता और रामायण नहीं पढ़ी न ही कोई वेद। वाह कमाल के भगवान थे। 7-साईं अपने भक्तो को प्रशाद के रूप में मॉस चावल (नमकीन चावल) देते थे। खास कर ब्राह्मण भक्तो को।ये तो संभव ही नहीं की कोई भगवान् का रूप ऐसा करे ।) 8-साईं जात के यवनी(मुसलमान) थे। और मस्जिद में रहते थे। लेकिन आज कल उसे ब्राह्मण दिखने का प्रयास चल रहा है (प्रश्न- क्या ब्राह्मण मस्जिदों मे रहते है) नोट-ये सारी बाते स्वयं” साईं सत्चारित “में देखे। यहाँ पर एक भी बात मनगढ़ंत नहीं है। ये हमारी एक कोशिश है अन्धेहिन्दुओ कोजगाने की । लेकिन हो सकता है की मै गलत होऊ क्युकी भैस के आगे बीन बजाने का कोई लाभ नहीं होता। Sunny tamak on facebook न्यूज 24 पर साई विवाद पर चल रही बहस में एंकर एवं अन्य धर्मों (मुस्लिम, ईसाई, सिख) के प्रतिनिधि उदारवाद के साक्षात अवतार दिखाई देने की कोशिश कर रहे थे एवं शंकराचार्य के बयान की निन्दा कर रहे थे तथा बेचारे हिन्दू प्रतिनिधि स्वामी बचाव की मुद्रा में थे। सब सबका मालिक एक वाला राग गाये जा रहे थे, इसी दौरान स्वामी मार्तण्ड मणि ने बहुत ही बेहतरीन सवाल किया कि क्या आप सब अपने धर्मस्थानों मस्जिद, चर्च व गुरुद्वारे में साई बाबा की पूजा की अनुमति देंगे? अब सबके चेहरे देखने लायक थे, सब इधर-उधर की बातें करने लगे। एंकर ने जोर देकर सवाल दोहराया तो टालमटोल करते- करते बताने लगे। मुस्लिम धर्मगुरु - इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की इबादत की मनाही है तो मस्जिद में साई की इबादत का प्रश्न ही नहीं उठता। बुतपरस्ती की तो सख्त-मनाही है वगैरह- वगैरह। पादरी जी - चर्च प्रभु यीशू के शरीर का स्वरूप है (कमाल है पादरी साहब ने आज ये नई बात बतायी), उसमें किसी और की पूजा नहीं हो सकती। सिख प्रतिनिधि - गुरुद्वारा गुरु का स्थान है। हम केवल गूरु की वाणी में ही विश्वास करते हैं। वह सभी धर्मों का आदर करती है, उसमें सभी भक्तों की वाणियाँ है…वगैरह-वगैर ह (दोबारा पूछे जाने पर ज्ञानी जी ने भी माना कि गुरुद्वारे में साई की पूजा की अनुमति नहीं दी जा सकती) — अब कहाँ गई वह उदारता एवं सबका मालिक एक की भावना। तो भाई जब तुम लोग साई को अपने धर्म स्थान में जगह नहीं दे सकते, उसको अपने भगवान (अल्लाह/येशु/गुरु) आदि का अवतार नहीं मान सकते तो जब शंकराचार्य ने यही बात हिन्दुओं की ओर से कही तो आलोचना क्यों कर रहे हो। ये सन्देश सीधा अंतर्मन से आया है। जो भी इसको 11 लोगों को fwd करेगा वो सनातन धर्म सेवा से मिले आनंद का भागी होगा। और जो पढ़ कर भी delete या ignore करेगा वो 5दिन तक इसी टेंशन में रहेगा की बात तो सही लिखी थी पर मैंने धर्म रक्षा का अवसर खो दिया।




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