!—-: सूक्ति :—-!!!
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"अन्धं तमः प्रविशन्ति येSविद्यामुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रतः ।।”
(बृहदारण्यकोपनिषद्—4.10)
अर्थः——जो “अविद्या” अर्थात् “भौतिकवाद” की उपासना करते हैं, वे गहन अन्धकार में जा पहुँचते हैं और जो “विद्या” अर्थात् कोरे “अध्यात्मवाद” में रत रहने लगते हैं, भौतिक-जगत् की परवाह ही नहीं करते, वे उससे भी गहरे अन्धकार में जा पहुँचते हैं।
इसलिए विद्या (परविद्या) और अविद्या (अपरविद्या) इन दोऩों को सम्मिलित करके इस जीवन को चलाना चाहिए। अविद्या अर्थात् भौतिक विद्या से मृत्यु को पार करके विद्या अर्थात् अध्यात्म से अमृत को प्राप्त करना चाहिए।
वैदिक संस्कृत
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