अपार ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा ग्रह यह पृथिवी लोक सर्वत्र मुनष्यों एवं अन्य प्राणियों से भरा हुआ है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसे परमात्मा ने बुद्धि तत्व दिया है जो ज्ञान का वाहक है। ईश्वर निष्पक्ष एवं सबका हितैषी है। इसी कारण उसने हिन्दू, मुसलमान व ईसाई आदि मतों के लोगों में किंचित भी भेद नहीं किया। सबका एक जैसा शरीर बनाया व उन्हें एक समान इन्द्रियां व शक्तियां प्रदान की हैं। ईश्वर के देश-देशान्तरों के कार्यों में भी सर्वत्र एकरूपता है। देश काल परिस्थितियों के अनुसार कहीं भेद उसके द्वारा नहीं किया गया है। सभी मनुष्यों का जन्म माता के गर्भ में हिन्दी मास के अनुसार 10 माह व्यतीत करने के बाद होता है। इन 10 महीनों में माता को अपनी भी देखभाल करनी होती है और साथ में अपनी भावी सन्तान की भी जो उसके गर्भ में पल रही होती है। सन्तान के प्रति वह इतनी सावधान होती है कि उसे अपने किसी हित व सुख की चिन्ता नहीं होती और सन्तान के लाभ के लिए वह अपनी सभी इच्छाओं व आकांक्षाओं के लिए समर्पित रहती है। प्रसव पीड़ा में असह्य वेदना माताओं को होती है। कुछ माताओं का तो प्रसव के समय देहान्त भी हो जाता है। पहले यह घटनायें अधिक होती थी परन्तु चिकित्सा विज्ञान की उन्नति से यह दर अब घट गई है। अतः माता का सन्तान को उत्पन्न करने और उसका पालन पोषण करने में सर्वाधिक योगदान होता है। सम्भवतः इसी कारण माता को ईश्वर के बाद दूसरे स्थान पर रखकर सर्वाधिक पूजा व सत्कार के योग्य माना जाता है। यह है भी ठीक, परन्तु क्या सभी सन्तानें माता व पिता की भावनाओं का ध्यान रखते हैं?
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