Monday, March 9, 2015

य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य विश्व॑उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॒ दे॒वाः ।यस्य॒ छा॒याऽमृतं॒ यस्य मृत्युःकस्मै॑...

य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य विश्व॑उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॒ दे॒वाः ।यस्य॒ छा॒याऽमृतं॒ यस्य मृत्युःकस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥३॥– यजु० २५।११


अर्थ–(यः)जो(आतमदाः)आत्मज्ञान का दाता,(बलदाः)शरीर, आत्मा और समाज के बल का देनेहाया,(यस्य)जीसकी(विश्वे)सब(देवाः)विद्धान् लोग(उपासे)उपासना करते हैं, और(यस्य)जिसका(प्रशिषम्)प्रत्यक्ष, सत्यस्वरूप शासन और न्याय अर्थात शिक्षा को मानते हैं,(यस्य)जिसका(छाया)आश्रय हू(अमृतम्)मोक्षसुखदायक है,(यस्य)जिसका न मानना अर्थस् भकि्त न करना ही(मृत्युः)मृत्यु आदि दुःख का हेतु है, हम लोग उस(कस्मै)सुस्वरूप(देवाय)सकल ज्ञान के देनेहारे परमास्मा की लिए(हविषा)आस्मा और अन्सःकरण से(विधेम)भकि्स अर्थात् उसी की आ ज्ञा पालन में सस्पर रहें।




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