ईश्वरीय ज्ञान वेदों में भी यही बताया है, की ईश्वर एक ही है, और वह निराकार और जन्म मरण के चक्र से मुक्त है, उपासना केवल उसी की होनी चाहिए अन्यों की नहीं, जैसे हमने आज ईश्वर को कई रूप दे दिए है जो गलत ही नहीं अधर्म भी है, ईश्वर उपासना के लिए यज्ञ ही सर्वश्रेष्ठ है, पाखंडों में पड़कर जगह जगह ईश्वर के नाम से लगी मुर्तिया पूजना अधर्म की श्रेणी में आता है, सम्पूर्ण चार वेदों में कही भी मूर्ति पूजा का विधान नहीं है, वही यज्ञ के लिए हर जगह कहा गया है,
इसलिए हमें चाहिए की पाखण्ड को त्याग कर उस परमपिता की उपासना करें जो निराकार, अजन्मा, अन्तर्यामी है, उसकी उपासना के लिए नित्य यज्ञ संध्या आदि करें, अपने बच्चों को भी समझाए, उन्हें बचपन में ही यज्ञ कीरन सिखाये जिससे वह कभी भी पाखंडों का शिकार ना हो
यजुर्वेद ३-५२ (3-52)
सु॑सन्दृशं॑ त्वा व॒यम्मघ॑वन्वन्दिषी॒महि॑ । प्र नू॒नम्पू॒र्णब॑न्धुर स्तु॒तो या॑सि॒ वशाँ॒ अनु॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥३-५२॥
भावार्थ:- इस मन्त्र में श्लेष और उपमालंकार हैं।
मनुष्यों को सब जगत् के हित करने वाले जगदीश्वर ही की स्तुति करनी और किसी की न करनी चाहिये, क्योंकि जैसे सूर्यलोक सब मूर्तिमान् द्रव्यों का प्रकाश करता हैं, वैसे उपासना किया हुआ ईश्वर भी भक्तजनों के आत्माओं में विज्ञान को उत्पन्न करने से सब सत्यव्यवहारों को प्रकाशित करता है।
इससे ईश्वर को छोड़कर और किसी की उपासना कभी न करनी चाहिये।।
पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने आप लोगों की सेवा में कुछ वेबसाइट बनाई है जिससे आप साहित्य आदि निःशुल्क डाउनलोड कर सकते है,
एक वेबसाइट है जो वेद का सर्च इंजन है, जहाँ जाकर वेद मन्त्र संख्या से या शब्द से उसे चुटकियों में खोज सकते है
एक वेबसाइट और है जो सत्यार्थ प्रकाश का सर्च इंजन है इसका लाभ तो अवश्य उठाये
और हमारे फेसबुक पेज से भी जुड़े
और हमारे whatsapp ग्रुप से जुड़ने के लिए हमें इस नंबर पर आवेदन भेजे जहाँ आपको 3 स्लाइड और एक शब्दमय सन्देश मिलेगा हमारा नंबर है
+917073299776
from Tumblr http://ift.tt/1wC2VT2
via IFTTT
No comments:
Post a Comment