पाषाण पूजा, मजार पूजा, यंत्र-तन्त्र, थान आदि पता नहीं किस तरह के पाखंडों में अशिक्षित ही नहीं शिक्षित वर्ग भी फसा पड़ा है, और निकालने का प्रयास करने वाले को दो बाते और सुना देते है, वेदों को भुला कर मनुष्य ना जाने किन किन पाखंडों को मानने लगा है, जिससे उसे लाभ कुछ नहीं होता अपितु वो और दुखों के दलदल में फसता जाता है, हमारा प्रयास यही है और सभी आर्यों अर्थात श्रेष्ठ मनुष्यों का कर्तव्य बनता है, की हम पाखंडों में फसे मनुष्यों को बाहर निकाले
मनुष्यों को चाहिए की वेद ज्ञानदाता ईश्वर की उपासना नित्य करनी चाहिए, ईश्वर उपासना का श्रेष्ठ और एकमात्र तरीका हवन संध्या है, इसके अलावा मूर्ति पूजा आदि पाखंड है, हर नए पवित्र कार्य से पहले ईश्वर की उपासना जरुर करनी चाहिए
यजुर्वेद ४-४(4-4)
चि॒त्पति॑र्मा पुनातु वा॒क्पति॑र्मा पुनातु दे॒वो मा॑ सवि॒ता पु॑ना॒वच्छि॑द्रेण प॒वित्रे॑ण॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिभिः॑ । तस्य॑ ते पवित्रपते प॒वित्र॑पूतस्य॒ यत्का॑मः पु॒ने तच्छ॑केयम् ॥४-३॥
भावार्थ:- मनुष्यों को उचित है कि जिस वेद के जानने वा पालन करने वाले परमेश्वर ने वेदविद्या, पृथिवी, जल, वायु और सूर्य आदि शुद्धि करने वाले पदार्थ प्रकाशित किये हैं, उसकी उपासना तथा पवित्र कर्मों के अनुष्ठान से मनुष्यों को पूर्ण कामना और पवित्रता का सम्पादन अवश्य करना चाहिये।।
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