शंका- ईश्वर सर्वत्र हैं,इसलिए उसकी मूर्ति बनाकर
उसे नहीं पूजना चाहिए।H2O भी हवा में
सर्वत्र है,तो फिर गिलास से पानी पीने
की क्या आवश्यकता है,पानी को हवा से
प्रत्यक्ष रूप से ही ग्रहण करो।
समाधान- गिलास से पानी पीना और हाथ से
पानी पीने के उदाहरण से इस मूर्खतापूर्ण
अपनी शंका को समझ लीजिये-
देखिये,जो चीजें मनुष्य
नहीं बना सकता,वो सब ईश्वर ने बनायी है।
मालूम हो कि तीन चीजें अनादि हैं-
आत्मा,परमात्मा,प्रकृति(जीव,परमात्मा,परमाणु)।
सभी जीव प्रकृति से चीजें
प्राप्त करता है।कोई भी चीज वह अपने
आप न तो बना सकता और न
ही प्रकृति की किसी चीज
को नष्ट कर सकता।इस बात की पुष्टि विज्ञान का
द्रव्य
की अविनाशिता वाला सिद्धांत भी करता है।
ईश्वर प्रदत्त चीजों का रूप बदलकर मनुष्य अपने
प्रयोग की चीजें बनाता है।मनुष्य अपने
द्वारा बनायी चीजों के प्रयोग के
बिना भी जीवित रह सकता है।जैसे आप
ईश्वर प्रदत्त हाथ से पानी पी सकते
हैं,क्योंकि मनुष्य खुद ईश्वर की एक
अनूठी कृति है।इसी प्रकार अन्य वस्तुएं
जो मनुष्य ने बनायी है।जैसे,मोटर
साइकिल,गाडी,ट्रेन,हवाई जहाज आदि वाहनों व
मोबाइल,घड़ी,केकुलेटर आदि सभी प्रकार
की चीजों बिना भी मनुष्य
जीवित रह सकता है।क्योंकि जितने
भी ईश्वर प्रदत्त माध्यम है,हम उनके ऊपर निर्भर
रहकर भी जीवित रह सकते हैं।विकास
धीरे-धीरे हुआ है,क्योंकि विकास एक सतत
और निरन्तर होने वाली प्रक्रिया है।
सृष्टि की शुरुआत में पानी पीने
के लिए गिलास नहीं था।लोग ईश्वर प्रदत्त बरसात के
पानी से,जो विभिन्न जगहों पर ऊंची-
नीची जमीन में होने वाले
गड्ढों में भरा रहता था।उसे अपने हाथों से पीकर
अपनी प्यास बुझा लेते थे।तब गिलास
तो था ही नहीं,अन्य विकास परक
चीजें भी नहीं थी।
गिलास आदि प्रयोग करने वाली चीजें हमने
विकास तेज करने के लिए बनाई हैं।कौन कहता है कि
मूर्ति,गिलास,सा
इकिल या किसी भी मेटेरियल में
परमात्मा नहीं है।होता है,क्योंकि वो सर्व्यापक है।
लेकिन हम ये कहते हैं कि वो इन
चीजों जैसा नहीं होता।भौतिक
चीजों के आकार का ईश्वर को माने तो वो साकार
हो जाएगा।
लेकिन ईश्वर तो निराकार है।जो लोग ईश्वर को
साकार कहते हैं
तो वो लोग वेदों की”न तस्य प्रतिमा अस्ति”
वाली बात को गलत साबित करके दिखाए।अगर गलत
सिद्ध
नहीं क्र सकते तो क्यों गिलास के उदाहरण से ईश्वर
को बदनाम करने पे लगो हो।ईश्वर की मूर्ति और
गिलास
जैसा बताने वाले लोग नास्तिक हैं,क्योंकि उन्हें ईश्वर
के बारे में
जानकारी नहीं है।जब प्राचीन
काल में गिलास आदि चीजें
नहीं थी,हम तब
भी जी लेते है।लेकिन ईश्वर तब
भी था,अब भी है और आगे
भी रहेगा,क्योंकि ईश्वर अनादि है।लोग उसे तब
भी महसूस करते थे।डरने की स्थिति में
डरते थे,हँसने की स्थिति में हंसते थे।उत्साहित व
दुखी भी होते थे।ये स्थितियां मनुष्य के अंदर
ईश्वरत्व विद्यमान होने से पैदा होती हैं।मनुष्यों के
साथ-साथ सभी जीवों में रहने
वाली इन स्थितियों के कारण ही मनुष्य लोग
ईश्वर को जानते-मानते आये हैं।
समस्त माध्यम ईश्वर प्रदत्त है।हमने क्या बनाया है?कुछ
भी नहीं।हमने उनका रूप बदलकर अपने
प्रयोग की चीजें
बनायी है,ताकि हम लगातार विकास करते रहें।अब उन
चीजों को ईश्वर जैसा बताकर उनका उपहास उड़ाना
है।
जो लोग मूर्ति पूजा को गिलास से पानी पीने के
द्वारा समझाते है।हमारा उनसे ये सवाल हैं कि प्रकृति
5 तत्वों से
मिलकर बनी है।इन पाँचों चीजों को स्वयं
बनाके दिखाओ।क्यों खाने पीने के लिए
गेंहू,चना,गन्ना
,मक्का आदि विभिन्न प्रकार की चीजें
धरती माता में उगाते हो?क्यों इन चीजों से
प्रोटीन,कैल्सियम,विटामिन कार्बोहाइड्रेट
आदि चीजें प्राप्त करते हो।ये भी प्रकृति में
सर्वत्र है।इनको प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करो।हम तो
प्रत्यक्ष
ग्रहण नहीं कर सकते।ये काम मूर्ति पूजा वाले करके
दिखाएँ।हाँ,हम इतना वादा जरूर कर सकते हैं कि हमने
प्रकृति से
पदार्थ लेकर विभिन्न प्रकार की जो चीजें
बनायी है,जब तक ईश्वर को साकार मानने वाले
कहेंगे,तब तक इनका प्रयोग किये बिना जीवित रह
लेंगे,चाहे इसका एफिडेविट ले लो।जिस प्रकार जीव-
जन्तु
ईश्वर प्रदत्त चीजें से अपना जीवन
निर्वाह कर लेते हैं ऐसे ही हम
भी जीकर दिखा देंगे।लेकिन ईश्वर को साकार
बताने वाले लोग प्रकृति से खाने-पीने चीजें
प्रत्यक्ष लेकर दिखाए।
बिना किये अगर कुछ मिलता,तो ईश्वर की सत्ता
कहाँ रह
जाती,कैसे सृष्टि चलेगी।कर्मफल के
सिद्धान्त का क्या होगा?इसको भी विस्तार से
समझाएं।
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