योग का सत्य स्वरुप और फैली भ्रांतियां-
योग की उत्पत्ति बिना वेदों के
नहीं हो सकती। सर्वप्रथम
वेदों की उत्पत्ति हुई तत्पश्चात
ऋषि पतंजलि ने योग को एक सूत्र में
बांधा ताकि मनुष्य योग का भरपूर लाभ
उठा सके और जन्म मरण के चक्र से छूट कर अनन्त
समय के लिए मोक्ष प्राप्त कर सके। योग
बिना ईश्वर को जाने बिना माने
नहीं हो सकता। क्योकि ऋषि पतंजलि ने
योग दर्शन में स्पष्ट किया है-
योगश्चित्तवृत्ति निरोध:।
अर्थात- चित्त की वृत्तियों को निरोध
कर देना ही योग है। और योग का अर्थ है
जोड़। यह योग किसके साथ और कौन करे
तो इस प्रश्न का उत्तर है की आत्मा ईश्वर से
योग करे जिस कारण ईश्वर
को आत्मा संवेदनाएं दे और ईश्वर
आत्मा को प्रेरणाएँ दे।
अगर आप ईश्वर को ठीक ठीक
नहीं जानते और
नाही मानते हो तो योग
हो ही नहीं सकता। सर्वप्रथम स्वयं
को जानना और ईश्वर और प्रकृति के स्वरुप
को ठीक ठीक जानना अति आवश्यक है
अन्यथा जो आपका लक्ष्य कैवल्य का है
नहीं प्राप्त कर पाएंगे।
मन को एकाग्र कर परमात्मा में स्थापित
करके आत्मा को ईश्वर में समाहित कर
देना और ईश्वर के गुणों का चिंतन सूक्ष्म रूप में
करना ताकि आत्मा के भीतर ईश्वर के
गुणों का प्रतिस्थापन हो सके।
आज कुछ आसनों और प्राणायामो को योग
कह कर मुर्ख बनाया जाता है और हम उस पर
विशवास करके लक्ष्य से बिछड़ जाते हैं।
जबकि योगदर्शन में चार प्राणायाम बताये
गए हैं जिनके द्वारा मन को एकाग्र
किया जा सके। केवल एक आसन किया जाए
जिसमे दीर्घ काल तक स्थिर बैठा जा सके।
योग दर्शन में इसके लिए भी स्पष्ट
कहा गया है-
स्थिर सुखस्य आसनं।
अर्थात- जिस आसन में सुखपूर्वक स्थिर
बैठा जा सके उसी आसन को करें।
योग के लिए चार आसन योग दर्शन में बताये
गए हैं।
1- पद्मासन 2- स्वस्तिकासन 3- अर्धपद्मासन
4- सुखासन।
इन चार से विपरीत आसन में बैठ कर योग
नहीं होता। इसी प्रकार प्राणायाम के
विषय में ऋषि दयानंद ने ऋग्वेद
आदि भाष्यभूमिका में उपासना विषय में
स्पष्ट किया है-
जो मनुष्य नाक पकड़ कर प्राणायाम करते हैं
वह बाल बुद्धि के समान हैं।
अनुलोम विलोम करना मूर्खता होती है
ऐसा ऋषि दयानंद ने कहा है।
आज हठ योग को योग की श्रेणी में
रखा जाता है। हठयोग जैसे की कपाल
भाति, भ्रमरि, एक टांग पर खड़े हो जाना,
अपने चारो ओर अग्नि जला कर बैठ जाना,
अपने शरीर को कष्ट देना, उपवास करके स्वयं
को दुःख देना आदि आदि होते हैं। और योग
दर्शन में स्पष्ट किया गया है की हठ योग
करना महामूढ़ता को दर्शाता है तो योग के
नाम पर जो आपसे यह सब करवाये उसे नितांत
ढोंगी और विद्याहीन
ही समझना चाहिए।
ऋषियो के नाम पर जो तथाकथित योग
बेचते हैं उसका प्रचार प्रसार करते हैं उनसे
हमेशा सावधान रहना चाहिए। योग मनुष्य
को उसके लक्ष्य तक पहुचाता है परंतु अगर जाने
अनजाने हम योग का वास्तविक स्वरुप
मनुष्यो के समक्ष नहीं रख रहे तो यह पाप
ही होगा।
ऋषि पतंजलि द्वारा दिए गए अष्टांगयोग
को ही अपनाएँ इधर उधर समय व्यर्थ करने से
कोई लाभ नहीं क्योकि वास्तविक योग
ही हमे विद्यावान और विज्ञान प्राप्त
करा कर मोक्ष का अधिकारी बनाता है।
आज कल बोद्धिष्ट की देन एक और योग है
जिसमे वह कुण्डलिनी जागृत करने और
शरीर
में चक्रों की व्यवस्था होने को सिद्ध करते हैं
मेरा उन लोगो को आवाहन है की कृपया आएं
और मुझे सिद्ध करके बताएं। इसमें हमे
यही जानना चाहिए की योग
शरीर से
नहीं अपितु ईश्वर से आत्मा का होता है।
क्योकि ईश्वर चेतन है और आत्मा भी चेतन और
चेतन चेतन से जुड़ सकता है नाकि जड़ से। भले
ही आत्मा शरीर में हो परंतु आत्मा और
शरीर
के गुण एक दुसरे से विपरीत ही हैं।
आप सभी से अनुरोध है की
श्री कृष्ण और
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
की भाँती अष्टांग योग को अपनाओ और
योग के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करो।
योगिराज श्री कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम
श्री राम की जय।
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