वैदिक प्रार्थनाओं में सत्य,शांति व् ज्ञान से परिपूर्ण बने रहने की बात कही गयी हे यह तभी हो पायेगा जब अज्ञान,अशांति,असत्य से होने वाली हानीया मन को बराबर दिखती हे अकेले शुभ को महत्त्व दे ने मात्र से अशुभ से पीछा नहीं छूटता जो गले पड़ गया हे या जिसे स्वयं हमने ही दाल दिया हे
रोग हे तो स्वास्थ्य के नियमो का पालन करने से ही सफलता नहीं मिलेगी,औषधि भी लेनी पड़ेगी,पथ्य परहेज भी करना पडेगा खाशी के कष्ट से मुक्त होने के लिए जब जब भी खट्टे पदार्थ खाने की इच्छा हो तो मन को समजाना पडेगा की ये चीज गलत हे तेरे रोग को बड़ा देगी|
मन अपना का एक स्वभाव हे जैसी ही सुजाव उसको दिए जाते हे मन उसको उसी रूपमे ग्रहण करता हे पर उसे बार बार सिखाना पड़ता हे एक बार में सब कुछ नहीं सिख पाता जब यह मन सदा सदा के लिए यह बात सिख लेता हे की विषयो का सुख अंनंत दुखो से भरा हुवा हे तो उसे ही वैराग्य् की पराकाष्ठा कहा गया हे
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