देवता, मनुष्य तथा दानव, तीनों प्रजापति की संतानें थीं. एक बार तीनों प्रजापति से उपदेश ग्रहण के लिए आए. प्रजापति ने सबसे पहले देवता को उपदेश दिया-“द”. देवता उपदेश लेकर जाने लगे. प्रजापति ने पूछा- इसका क्या अर्थ तुमने सोचा. देवता बोले- हमें दमन करने का उपदेश मिला है.
प्रजापति ने कहा-भोग विलास, नृत्य-संगीत आदि का त्याग करके संयमित जीवन बिताते और परोपकारी बनके व्रत पूजा पाठ करना देवत्व का गुण माना जाएगा. इसका पालन करने वाला ही स्वर्ग का अधिकारी होगा. इसलिए दमन करो.
इसके बाद मनुष्य आए. प्रजापति ने उन्हें भी कहा- “द” फिर अर्थ पूछा. मनुष्य बोले- आपने हमें दान का आदेश दिया. प्रजापति प्रसन्न हुए- उचित अर्थ निकाला है तुमने. मनुष्यों में स्वार्थ हावी होगा तब दान ही से उसका उपकार हो पाएगा.
अब दानवों की बारी थी. प्रजापति ने उन्हें भी “द” का उपदेश दिया. दानव संतुष्ट होकर जाने लगे तो प्रजापति उपदेश का क्या अर्थ पूछा.दानव बोले- आपने हमें दया का आदेश किया है.
प्रजापति ने कहा- तुम्हारा कुल बहुत क्रोधी और आततायी हो गया है. यदि तुमने दया नहीं की तो अस्तित्व संकट में आ जाएगा.
प्रजापति का संदेश है- पृथ्वी पर “द” को धारण करने वाले उत्तम कोटि के जीव होंगे. अपने-अपने स्वभाव के अनुकूल उन्हें लोक में सम्मान और उसके बाद परलोक में स्थान मिलेगा.
समाज के संत महात्माओं को “द” का संकेत लेने वाले देवता, दानी कर्मयोगियों को “द” का संकेत लेने वाले मनुष्य और खल प्रवृति के लोगों को “द” का संदेश लेने वाले दानव कुल का जानना चाहिए.
ऐसी अनुपम संग्रह पढ़ने के लिए फ्री प्रभु शरणम् (prabhu sharnam) एंड्रॉयड एप्प डाउनलोड करें.
http://ift.tt/1FGfwIa
from Tumblr http://ift.tt/1HEy8Fz
via IFTTT
No comments:
Post a Comment