जब तक हिन्दू ब्रह्ममहूर्त में उठकर गायत्री मंत्र के जप द्वारा ईश्वर का ध्यान नहीं करेगा,
जब तक मंदिरों से अविद्वान, पाखण्डी,वाममार्गी व स्वार्थी पण्डितों को हटा कर वेदज्ञों को नियुक्त नहीं किया जाएगा,
जब तक मंदिरों को गुरुकुल,गोशाला व यज्ञशाला में न बदला जाएगा,
जब तक मूर्ति की जगह हवन कुण्ड न रखा जाएगा,
जब तक भागवत आदि अनार्ष ग्रन्थों की कथाओं को त्याग कर वेदमंत्रों की व्याख्या प्रारम्भ नहीं होगी,
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तब तक हिंदुओं का कुछ नहीं होने वाला।हिन्दू अगर अपने आप को संगठित करना चाहते हैं,तो वाममार्ग अर्थात वेदविरुद्ध मार्ग को छोड़कर वेदों की ओर लौटना ही पडेगा।
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