रंगों की होली:-
1-होली हर्षोलास का उत्सव है-
होली उल्लास का और वर्जनाओं से मुक्ति का त्योहार है।इस अवसर पर समाज में निहित वर्जनाओं/पाबंदियों को कुछ समय के लिए तोड़कर व्यक्ति हल्का महसूस करता है।समाज की स्वाभाविक गति उसके ज्यादा उदार और सहिष्णु होने में ही है और उल्लास का रिश्ता अपनी आजादी व तरक्की का जश्न मनाने से है।होली व्यर्थ की पाबंदियों/अंधविश्वासों के टूटने का भी सन्देश है।
रंगों की फुहारों से आनंद का अपने चरम पर पहुँच जाना ही होली है।यह महोत्सव हर वर्ष फागुन के आने के साथ अपने आने की भी सूचना देता है।बच्चे पिचकारी से जो धमाल मचाते हैं,उसे देखकर दिल को एक सुन्दर अनुभूति होती है कि सर्दी के दिन अब गए।बसंत अपनी छटा बिखेरते हुए जा रहा है।रंग गुलाल का यह त्यौहार लोगों के आपस में प्रेम दोस्ती और एकजुटता की मांफ करता है।होली पर हर किसी को एक दूसरे से रंग का टीका लगाने/लगवाने की उम्मीद रहती है,ये टीका किसी के लिए भी अहितकर नहीं है,चाहे वो किसी भी समुदाय का क्यों न हो।
2-होली एक मनोवैज्ञानिक उत्सव है-
होली एक संपूर्ण त्यौहार है।इसमें हर अशुभ व बुरी बातों का दहन किया जाता है।भारत देश में जितने भी उत्सव है,उनमे होली सबसे ज्यादा मनोवैज्ञानिक उत्सव है।होली पर लोग जितने हल्के होते हैं,उतने किसी अन्य अवसर पर नहीं होते।क्योंकि होली प्यार की पिचकारी है,होली खुशियाँ है,उमंगें है,दुश्मनी को दूर करने की दवा है,उल्लास है,आनंद,सद्भाव है,मेल है,मिलाप है,होली का अर्थ अपसंस्कृति को रोकना भी है।होली पर सभी रंग एक जगह मिलने का अर्थ आपस के भेदभाव मिटाना है।
3-होली दुश्मनों को भी मित्र बनाने का उत्सव है-
होली एक दूसरे के गले मिलने और विरोधी को मित्र बनाने का त्यौहार है।होली वर्जनाओं से मुक्ति का त्यौहार है।लेकिन हमारे इस त्यौहार में इन दिनों विरोधी को मित्र बनाने से मित्र को दुश्मन बनाने की घटनाएं ज्यादा देखने में आ रही है।अगर होली के बहाने ही कुछ मित्रता का संचार हो जाए,तो हमारे बीच का जातिवादी जहर धीरे-धीरे कम होकर खत्म हो जाए।
4-होली में बढ़ रही बुराइयां-
लेकिन आज के समय में अक्सर ऐसा देखने में आ रहा है कि बहुसंख्या में लोग लगातार इस त्यौहार की आत्मा के विरुद्ध जा रहे हैं।वे होली खेलने में रासायनिक रंग जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है,का ही इस्तेमाल करने लगे हैं।शायद उन्हें नहीं पता कि होली का अर्थ प्रकृति प्रदत्त रंगों की छटा बिखेरने से ही है।जो यह याद दिलाता है कि प्रकृति में अगर विभिन्न प्रकार के रंग न होते तो शायद जीवन जीना भी असंम्भव ही था।वे प्राकृतिक रंगों की जगह रासायनिक पाउडर,पेंट,विभिन्न प्राकार के हानिकारक द्रव्य का जमकर दुपयोग करते हैं।एक दोइसरे पर गोबर व् कीचड उछलते हैं।एक दूसरे को पूरा गन्दा व बदबूदार करने की कोशिश करते है,ऐसी बेहूदा बातें उनमे पूर्व में किसी बात को लेकर पैदा हुई एक दूसरे के प्रति हीन भावना को ही दर्शाता है,उनके बीच के प्यार को नहीं।वो पिछले मन-मुटाव को दूर करके होली नहीं खेलते।ऐसी होली का क्या फायदा जो दुश्मनी पैदा करती हो।कई जगहों पर ऐसी हरकतों के कारण लड़ाई-झगड़ों की नौबत भी आ जाती है।कभी-कभी माहौल एकदम से खराब हो जाता है।मार-पिटाई,हत्या,जातिगत संघर्ष,सांप्रदायिक दंगे होली के दिन इसी वजह से होते हैं।”बुरा न मानो हीली है” के नाम पर आनंद और मौज-मस्ती का वातावरण दूषित हो जाता है और लोगों में दुश्मनी पैदा हो जाती है।भयंकर जातिवाद,हर जगह गरीब लोगों का अपमान व् भेदभाव,उनको अन्धकार में घसीटने वाली रूढ़िवादी परंपराएं,स्वार्थ,झोथि बातों पर गर्व,ऊँच-नीच की घटिया सोच व मृतकों के साथ-साथ जीवित लोगों की भी बड़ी बड़ी मूर्तियां व् उनके द्वारा पैदा होने वाली फूट जैसी अनेक बराइयां देश के लोगों के हौसलों को लगातार पस्त कर रही हैं।इन जैसे बहुत से कारणों से ही हमारे अपने लोगों के बीच की खाई कम होने की बजाय लगातार बढ़ रही है।जबकि इस त्यौहार में दुश्मनों को भी गले लगाया जाता है।इसी वजह से इस अवसर पर कुछ लोग अपने घरों से भी निकलना पसन्द नहीं करते,क्योंकि”बुरा न मानो होली है” की आड़ में बुरा बर्ताव ही ज्यादा किया जाता है।आज के समय में ये भी देखने में आ रहा है कि अधिकतर लोग नशा जैसे शराब आदि पीकर होली न खेलकर झगड़ा करने के लिए ही इधर-उधर शैतानों की तरह घूमते हैं।ये शैतान त्योहारों के अवसर पर भी नहीं रुकते बल्कि और ज्यादा पीते है।भद्दी-भद्दी गालियां देते हैं,जुआ खेलते हैं।होली की आड़ में महिलाओं को रंग लगाने के माध्यम से छेड़ते हैं।उनके गालों को अश्लीलता पूर्वक सहलाते हैं।फिर एक दूसरे को बताते हैं कि मैंने उस महिला को फलां जगह भी रंग लगा दिया।मैं तो कहता हूँ कि समाज के प्रबुद्ध लोगों को एक दिन पहले ही ऐसे लोगों की दोनों टांग बांधकर उन्हें किसी अँधेरे कमरे में डाल देना चाहिए।लेकिन दुर्भाग्यवश् ऐसे लोगों की संख्या भी अच्छे लोगों से ज्यादा हो चुकी है।उन्हें छेड़ने का मतलब अपने आप ही पिटना है।कहते हैं कि नंग से तो भगवान भी डरते हैं।कुछ लोग तो होली के बहाने अपनी पुरानी खुन्नस निकालते हैं।ऐसी अपसंस्कृतियों को रोकना जरूरी है,होली के साथ लगातार जुड़ने वाली पश्चिमी बुराइयों को रोकना बहुत जरूरी है,अन्यथा होली के साथ-साथ अन्य सभी त्योहारों का इसाईकरण/इस्लामीकरण होने में देर नहीं लगेगी।हैप्पी बड्डे टू यू जैसे त्यौहार हमारे बीच बढ़ रही पश्चिमी संस्कृति का ही फल है।हमारी वर्तमान होली
रूढ़िवाद से जुड़ गयी है,इसमें स्वयं जीवन नहीं है,समय उसे मिटाने के लिए आगे बढ़ रहा है।इसलिए समय रहते
इन बुराइयों के दूर होने से ही होली का महत्व है,अन्यथा बिल्कुल भी नहीं।त्योहारों को बुराइयों से बचाकर ही भारत की मानसिक,नैतिक आत्मिक,शारीरिक और आर्थिक उन्नति हो सकती है,अन्यथा जिस प्रकार सभी त्योहारों का इसाईकरण/इस्लामीकरण हो रहा है,उसके साथ देश का पतन तय है,इसमें कोई शक नहीं।
5-अंत में-
इस उत्सव की संस्कृति को बचाये रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।इसलिए आइये,हम अपने देश में होली को प्राकृतिक रंग-गुलाल के साथ ही खेलेँ,अन्य किसी भी गन्दी चीज के साथ नहीं।सामाजिक मेल-जोल बढ़ाएँखुशियां पाएं और खुशियाँ बांटे।
🔺🔻🔺🔻🔺🔻🔺🔻🔺
॥ ॐ ॥
सुख,शान्ति एवम समृध्दि की
मंगलमयी
कामनाओं के साथ
आपको ओर आपके परिवार
को
होली
की
“हार्दिक” शुभकामनाएं!
🔺🔻🔺🔻🔺🔻🔺🔻🔺
from Tumblr http://ift.tt/1BWdjXW
via IFTTT
No comments:
Post a Comment