।प्रकाशवेग एवं भारतीय वैज्ञानिक।
गेलीलिए ने वर्ष 1638 से प्रकाश का वेग मापने का निष्फल प्रयास किया । तत्पश्चात 300 वर्ष यह संशोधन चला आ रहा विभिन्न विज्ञानिओ ने वेगाङ्क प्रस्तुत किया वह आज सर्वमान्य अंक है – 2.99.972 की,मी, / प्रति सेकंड ।
इसप्रकार आज के वैज्ञानिकों को प्रकाशवेग मापने मे 300 वर्ष लगे ।
दूसरी ओर प्राचीन भारत मे ‘प्रकाशवेग ‘ हजारो वर्ष पूर्व हम प्राप्त कर चुके थे , चार /पाँच हजार वर्ष पूर्व हमारे प्राचीन ऋग्वेद मे उल्लेख है । हमने हमारे प्राचीन ग्रंथो का अध्ययन न किया ।
योजनानाम् सहस्रे द्वे द्वे शने च योजने ।
एकेन निमिषार्थेंन क्रममाण नमोस्तु ते ॥
अर्थात ——-अर्ध निमिष मे 2202 योजन के अंतर के प्रवास करने वाले हे प्रकाश तुमको नमस्कार।
प्राचीन भारत मे योजन एवं निमिष अनुक्रमानुसार अंतर तथा वेग मापने का एकम था ।
वर्तमान पद्धति अनुसार एक निमिष = 0.213 सेकंड हुआ एवं एक योजन = 14.48 की,मी,
इस गणना ऋग्वेद के श्लोक को लागू करे तो प्रकाश 0.106 सेकंड मे 31,884 किमी अतः एक सेकंड मे 3,00,801 किमी का वेग प्रति सेकंड हो जाता है ।
कोई भी साधन एवं उपकरण विहीन भारत के तत्कालीन विद्वानो ने प्रकाशवेग का मापन किस प्रकार किया होगा ?
हमारी बौद्धिक सम्पदा एवं समृद्धि कितनी विशाल थी ? किन्तु हम पश्चिम के प्रवाह मे डूबते रहे तथा हमारे ही ग्रंथो का अवमूल्यन करते रहे ।
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