हृदय भीतर आरसी ,मुख देखा नहिं जाय |
मुख तो तबही देखि हो , जब दिल की दुविधा जाय || साखी २९ , बीजक
अर्थ - परमतत्व परमात्मा को देखने के लिए हृदय के भीतर आरसीतुल्य जीवात्मा का वास है , परंतु परमात्मा का साक्षात्कार नहीं किया जाता , क्योंकि परमात्मा को तभी देखा जा सकता है , जब दिल से दुविधा - देहाध्यास नष्ट न हो जाए |
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