[7:33pm, 23/12/2015] भूपेश सिंह आर्य: 🌻🌹ओ३म्🌻🌹
भूपेश आर्य
🌻चक्रासन🌻
यह आसन बहुत प्रसिद्ध है।इससे प्रायः सभी परिचित हैं।अखाड़ों में इस आसन की शिक्षा दी जाती है।नट लोग भी इस आसन को दिखाते हैं,परन्तु यह आसन केवल नट की कलाबाजी या तमाशे की वस्तु नहीं है अपितु स्थिर यौवन,स्वास्थय और आरोग्य प्रदान करने वाली एक अमूल्य जड़ी है।
🌻विधि:-चक्रासन कई रीतियों से किया जा सकता है।यहां हम अत्यन्त सरल एक ही विधि देंगे जिससे बच्चे,जवान और बूढे़ सभी इसे सरलतापूर्वक करके इससे लाभान्वित हो सकें।
[9:18pm, 23/12/2015] भूपेश सिंह आर्य: भूमि पर कम्बल या दरी बिछाकर पीठ के बल चित्त लेट जाइये।अब पैरों को घुटनों से मोड़कर एड़ियों को भूमि पर रक्खें।हाथों को ऊपर की ओर ले जाकर कानों के पास हथेलियों को भूमि पर इस प्रकार टेकें कि अंगुलियां कन्धों के पास रहें।कुहनियां आकाश की और रहेंगी।अब पैरों के पंजों और हथेलियों पर शरीर का सारा बोझ ड़ालकर सिर और धड़ को ऊपर उठा दीजिये।अब धीरे-धीरे हाथ की अंगुलियों और पैर की एड़ियों को समीप लाने का प्रयत्न कीजिये।
सिर को हाथों के बीच में लटका दीजिए।
🌻समय:-इसे आरम्भ में ६ सैकण्ड़ से अधिक नहीं करना चाहिये।धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाकर पाँच मिनट तक कर सकते हैं।
🌻लाभ:-यही एकमात्र ऐसा आसन है जिससे शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होकर सारे शरीर को लाभ पहुंचता है।यह आसन साधक को चुस्त,फुर्तिला और शक्तिसम्पन्न बना देता है।
इस आसन के अभ्यास से साधक को शरीर पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हो जाता है।प्रत्येक कार्य करने में उत्साह,उमंग और तरंग उठती हैं।यह आसन कायाकल्प की एक विधि है।
इस आसन का अभ्यास वृद्धों को युवक बना देता है और युवको में अद्भुत शक्ति का संचार कर देता है।
इस आसन से गरदन,कन्धे और कमर के दर्द ठीक हो जाते हैं।जो लाभ शलभ,भुंजग और धनुरसनों से प्राप्त होते हैं वे सब इस आसन द्वारा भी प्राप्त होते हैं।
इस आसन से सिर से लेकर पैर तक के सभी तन्तुओं पर खिंचाव पड़ता है,अतः रक्ताभिसरण क्रिया नियमित हो जाती है।मष्तिष्क,छाती और पेट के सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है।
पाचन-क्रिया ठीक हो जाती है।फेफड़े मष्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में रक्त पहुंचाते हैं ,अतः इस आसन से मष्तिष्क को उतना ही लाभ प्राप्त हो जाता है जितना शीर्षासन से;
और विषेशता यह है कि जिन व्यक्तियों को शिर्षासन अनुकूल नहीं बैठता वे भी इस आसन से लाभ उठा सकते हैं।
इस आसन से ज्ञानवाहिनी नाड़ियों का व्यायाम होकर उन्हें भी बल मिलता है।इससे वृद्धावस्था में भी शारीरिक शक्ति का क्षय नहीं होता।इस आसन से रीढ़ की हड्ड़ी में कोमलता आती है,अतः बुढ़ापे में भी कमर झुकने की सम्भावना नहीं रहती।
इस आसन के निरन्तर अभ्यास से स्वप्नदोष से छुटकारा मिल जाता है।
इस आसन से मांसपेशियां सुगठित और सुन्दर बन जाती हैं।
अजीर्ण,बादी और पेट में गैस बनने की शिकायत करने वाले व्यक्तियों को यह आसन अवश्य करना चाहिए।इस आसन से पेट की चर्बी कम होकर तोंद छोटी हो जाती है,भूख खूब लगती है,मन्दाग्नि और उससे होने वाली व्याधियां शान्त हो जाती हैं।
इस आसन में रोगनिरोधक शक्ति बहुत है।इस आसन के अभ्यासी को कण्ठमाला,गलगण्ड,क्षय(टीबी),अतिसार,नपुंसकता और लकवा आदि रोगों के होने की संभावना नहीं रहती।
स्त्रियां भी इस आसन को करके लाभ उठा सकती हैं।
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