Submitted by Rajendra P.Arya on Sun, 2011-07-24 03:43. साम वन्दना
पथ दर्शक
ओ३म् उपोषु जातमप्तुरं गोभिर्भङ्ग परिष्कृतम्|
इन्दुं देवा अयासिषु||साम ७६२||
मातु- पिता- प्रिय गुरुजन सारे |
पथ- दर्शक हैं यही हमारे |
जब श्रेष्ठ जनों का साथ रहे,
निर्दोष प्रफुल्लित गात रहे,
तब प्रभु प्रकाश का हो विकास
स्फूर्ति तेज नित प्राप्त रहे |
जीवन में वैभव विस्तारे |
पथ- दर्शक हैं यही हमारे ||
दुर्व्यसन पराजित हो जायें,
प्रिय परिष्कार तप अपनायें
हम तन- मन- धन से निर्मल हों
सौन्दर्य शक्ति गति विकसायें|
प्रभु उपदेश अनघ उजियारे|
पथ- दर्शक हैं यही हमारे ||
हम प्रभुवर के गुण अपनाते,
श्रेष्ठ जनों में आते- जाते,
उनकी अविरल सत्संगति से
हम प्रगति पन्थ सुखमय पाते |
देते हमको सदा सहारे|
पथ- दर्शक हैं यही हमारे ||
राजेन्द्र आ
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