कया वेद को न मानने वाला नास्तिक है ??
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उत्तर:-अवश्य नास्तिक ही होंगे !
कयोकि वेद ईश्वरीय ग्रंथ है और वह आदेश के रुप मे है ,और उसमे सम्पुर्ण ज्ञान विज्ञान की बातें है अत : यदि कोई वेद को नही मानता है तो वह ईश्वर के आदेश का उल्लंघन करता है , इस प्रकार वह नास्तिक ही कहलायेगा !!
दूसरा मनुस्मृति के अनुसार, जो वेद की निन्दा करता है वह नास्तिक है।
उदाहरण के लिये, कोई व्यक्ति कहे की मैं अपने पिता को बहुत मानता हूँ और पिता कोई आदेश दे तो उसका पालन ना करे तो वह पिता का अपमान करता है।
वेद परमपिता की शिक्षा है उसका मानना ही परमात्मा का मानना है।
प्रशन:-जिसने वेद नही पढा,लेकिन ईश्वर मे विश्वास है तो कया वह भी नास्तिक है ?
उत्तर:-बात यहां वेद को पढ़ने से नही है , परन्तु वेद मे जो बातें बताई गई उसका विपरित कार्य करने वाले तो नास्तिक ही होंगे.यदि कोई व्यक्ति वेद को नही पढ़ा है परन्तु उसका कार्य ईश्वरीय नियमानुकुल है तो वे आस्तिक ही होंगे .
जैसे कोई ऐसे व्यक्ति जो वेद को नही पढ़ा है परन्तु ईश्वर की सत्ता मे उसे विश्वास है तो वह उसका ज्ञान वेदानुकुल ही है और ऐसे व्यक्ति बिना वेद पढ़े भी आस्तिक होगा परन्तु जो वेद को पढ़ भी लिया और ईश्वर की सत्ता पर उसे विश्वास नही है तो वह वैदिक ज्ञान के विपरित हुआ इस प्रकार उसे नास्तिक की श्रेणी मे रखा जायेगा
इसलिए कहा गया वेद की निंदा करने वाले वाले अर्थात उसकी आज्ञाओं को न मानने वाले नास्तिक होता है .
अत: वेद को न मानना वेद निंदा ही हुआ वह मनु जी के अनुसार नास्तिक हुआ .
ईश्वर की सत्ता मानने वाले एकान्त में दुराचार कर बैठते हैं किन्तु जो वेदों की शिक्षा का पालन करते हैं वे ही सदाचारी होते हैं। वास्तविक आस्तिक वही हैं। वेदों की शिक्षा का पालन नहीं करने वाले तो आस्तिक का मुखौटा लगाकर घूमते हैं, ढोंगी, पाखण्डी हैं।
केवल एक प्रकार का आस्तिक होता है जो वेदानुकूल आचरण करे अन्य सभी नास्तिक हैं।
अब जो केवल ईश्वर की सत्ता को मानता है परन्तु नदियों की आरती उतारना,मूर्तियों की आरती उतारना,मूर्तियों का विसर्जन करना,शिवजी के गुप्तांग वा लिंग पर जल चढाना,ईश्वर का अवतार मानना,सम्प्रदायों को धर्म मानना,स्वछन्दता को स्वतन्त्रता मानना,पुराण कुरान बाईबल आदि को ईश्वरकृत वा ऋषिकृत मानना,मांस खाना पशुबलि देना आदि सब पाप कर्म करता है और वेद को ईश्वरीय वाणि नहीं मानता या वेदों को कचरा बताता है….उसे क्या कहेंगे ? निश्चित ही वह नास्तिक है
इसलिए वेद नहीं पढे तो कोई बात नहीं परन्तु जो वेद को मानता है और आचरण विचार वेदानुकूल हैं तो आस्तिक ही कहलाएगा.
इस प्रकार जो वेद को नही मानता किन्तु ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है तो भी वो नास्तिक नही अज्ञानी है।
कयोकि ईश्वर को मानने से तात्पर्य ईश्वर की आज्ञा मानने से है और वह बिना वेद के संभव नहीं है, और ईश्वर को भी वेद बिना कहाँ ठीक ठीक जाना जाता है।
वेद ईश्वर के सही स्वरूप का ज्ञान कराता है और यदि कोई वेद ही को न माने तो ईश्वर के यथार्त स्वरूप को कैसे जान पायेगा और यदि ईश्वर के यथार्त स्वरूप को नही जानेगा तो मानेगा कैसे और यदि यथार्त ईश्वर को न मानकर किसी अन्य को मानेगा तो ये ईश्वर की अवहेलना होगी |
इसलिए केवल मानने से ही सब नही होता है मानने से तो कुछ भी,किसी मे भी,आस्था बना लेने से आस्तिकता का पाखण्ड होता है,आस्तिकता का मुखोटा पहनना होता है,
जो आस्तिक होकर भी नास्तिक ही हुआ तो ऐसे आस्तिक को हम अज्ञानी आस्तिक ही कहेंगे | इस लिए ईश्वर के सही स्वरूप को वैदिक ज्ञान जानना चाहिए और उसी के अनुरूप उसे मानना चाहिए तभी कोई आस्तिक होगा अन्यथा आस्तिक होकर भी नास्तिक ही कहलायेगा |
📝….साभार:- विद्वानो से चर्चा
प्रेषक:-नरेश खरे
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