क्या में एक हूँ ?
व्यक्तिगत जीवन की अभिलाषा, पारिवारिक जीवन कर्तव्य।
समाजहित की कामना, राष्ट्रौथान की महात्वाकांक्षा।
अनन्त और भी हैं विचार….
क्या में एक हूँ?
द्रुपद पुत्री का चीर लुट रहा चौराहे पर,
कर रहा रावण हरण, जनक राजदुलारी का।
चीखें सुनाई दे रहीं, अवला की अत्याचारों से,
भेद रहे भारत मां का सीना, अत्याचारी तलवारों से।
ललकारता है झूठ आज, सच को भरे बाजार में……
क्या में एक हूँ ?
काल के भाल पर, दुष्ट पापी नच रहे,
हैं भैडिये राजपाठ पर, वनराज डर रहे।
बंधी पट्टी आंखों पर, न्याय सबको बराबर है,
पर अंधा तो धृतराष्ट्र भी था, जो पुत्र मोह में पागल है।
विष हो रहा अमृत आज, अमृत है विष बन रहा…..
क्या में एक हूं?
शंखनाद हो चुका, आज फिर कुरुक्षेत्र में,
फिर सारथी अर्जुन के, कृष्ण आज बन चुके।
है फिर उबाल ले रहा, मृत रक्त देह मे,
चिर विजय की कामना ले, असंख्य दीप जल उठे।
हुंकार उठ रही है फिर, हर गली,हर गांव से….
हां में एक हूं, हां में एक हूं…
हां में एक हूं, हां में एक हूं..
-राजेश रावत
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