।।ओ३म्।।
🚩योगदर्शन🚩
पौष ७
(२१-१२-२०१५)
तदा द्रष्टु: स्वरुपेsवस्थानम्।।
(योग.समाधि.३)
अर्थः- तब द्रष्टा के स्वरूप में स्थिति होती है।
व्याख्या- महर्षि पतंजलि कहते है जब दृष्टा (योगी) चित्त की वृत्तियों को रोक देता है अर्थात् जब योगी असम्प्रज्ञात समाधि में स्थित होता है तब उसकी अपने आत्मा और परमात्मा के स्वरूप् में स्थिति होती है।
और जब तक वह समाधिस्थ नही होता तब तक उसकी कैसी स्थिति होती है उसका वर्णन अगले सूत्र में करेंगे।
(मुकेशार्यः कानड़)
ओ३म्
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