यजुर्वेद ९-३१ (9-31)
अ॒ग्निरेका॑क्षरेण प्रा॒णमुद॑जय॒त्तमुज्जे॑षम॒श्विनौ॒ द्व्य॑क्षरेण द्वि॒पदो॑ मनु॒ष्या॒नुद॑जयता॒न्तानुज्जे॑षम् । विष्णु॒स्त्र्य॑क्षरेण॒ त्रीँल्लो॒कानुद॑जय॒त्तानुज्जे॑ष सोम॒श्चतु॑रक्षरेण॒ चतु॑ष्पदः प॒शूनुद॑जय॒त्तानुज्जे॑षम् ॥
भावार्थ:- जो सब प्रजाओं को अच्छे प्रकार बढ़ावे तो उसको भी प्रजाजन क्यो न बढ़ावें और जो ऐसा न करे तो उसको प्रजा भी कभी न बढ़ावे।।
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