यजुर्वेद ९-३८ (9-38)
दे॒वस्य॑ त्वा सवि॒तुः प्र॑स॒वे॒ श्विनो॑र्बा॒हुभ्या॑म्पू॒ष्णो हस्ता॑भ्याम् । उ॑पा॒शोर्वी॒र्ये॑ण जुहोमि ह॒त रक्षः॒ स्वाहा॑ रक्ष॑सान्त्वा व॒धायाव॑धिष्म॒ रक्षोव॑धिष्मा॒मुमसौ ह॒तः ॥
भावार्थ:- प्रजाजनों को चाहिये कि अपने बचाव और दुष्टों के निवारणार्थ विघया और धर्म की प्रवृत्ति के लिये अच्छे स्वभाव, विघया और धर्म के प्रचार करनेहारे, वीर, जितेन्द्रिय, सत्यवादी, सभा के स्वामी राजा को स्वीकार करें।।
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