Wednesday, December 16, 2015

भागवत पुराण ग्रंथो का बारे जानकारी पढे | =============== कुल 18 पुराण हैं। उनके नाम और क्रम इस...

भागवत पुराण ग्रंथो का बारे जानकारी पढे | ===============
कुल 18 पुराण हैं। उनके नाम और क्रम इस प्रकार हैः— —

(1.) ब्रह्मपुराणः—इसे “आदिपुराण” भी का जाता है। प्राचीन माने गए सभी पुराणों में इसका उल्लेख है। इसमें श्लोकों की संख्या अलग-2 प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है। 10,000,,,13,000 और 13,787 ये विभिन्न संख्याएँ मिलती है। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने किया था। इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है। इसमें कुल 245 अध्याय हैं। इसका एक परिशिष्ट सौर उपपुराण भी है, जिसमें उडिसा के कोणार्क मन्दिर का वर्णन है।

(2.) पद्मपुराणः—-इसमें कुल 641 अध्याय और 48,000 श्लोक हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार इसमें 55,000 और ब्रह्मपुराण के अनुसार इसमें 59,000 श्लोक थे। इसमें कुल खण़्ड हैं—(क) सृष्टिखण्डः–5 पर्व, (ख) भूमिखण्ड, (ग) स्वर्गखण्ड, (घ) पातालखण्ड और (ङ) उत्तरखण्ड।
इसका प्रवचन नैमिषारण्य में सूत उग्रश्रवा ने किया था। ये लोमहर्षण के पुत्र थे। इस पुराण में अनेक विषयों के साथ विष्णुभक्ति के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसका विकास 5 वीं शताब्दी माना जाता है।

(3.) विष्णुपुराणः—-पुराण के पाँचों लक्षण इसमें घटते हैं। इसमें विष्णु को परम देवता के रूप में निरूपित किया गया है। इसमें कुल छः खण्ड हैं, 126 अध्याय, श्लोक 23,000 या 24,000 या 6,000 हैं। इस पुराण के प्रवक्ता पराशर ऋषि और श्रोता मैत्रेय हैं।

(4.) वायुपुराणः–इसमें विशेषकर शिव का वर्णन किया गया है, अतः इस कारण इसे “शिवपुराण” भी कहा जाता है। एक शिवपुराण पृथक् भी है। इसमें 112 अध्याय, 11,000 श्लोक हैं। इस पुराण का प्रचलन मगध-क्षेत्र में बहुत था। इसमें गया-माहात्म्य है। इसमें कुल चार भाग हैः—(क) प्रक्रियापादः– (अध्याय–1-6), (ख) उपोद्घातः— (अध्याय-7–64), (ग) अनुषङ्गपादः–(अध्याय–65–99), (घ) उपसंहारपादः–(अध्याय–100-112)। इसमें सृष्टिक्रम, भूगो, खगोल, युगों, ऋषियों तथा तीर्थों का वर्णन एवं राजवंशों, ऋषिवंशों,, वेद की शाखाओं, संगीतशास्त्र और शिवभक्ति का विस्तृत निरूपण है। इसमें भी पुराण के पञ्चलक्षण मिलते हैं।

(5.) भागवतपुराणः—यह सर्वाधिक प्रचलित पुराण है। इस पुराण का सप्ताह-वाचन-पारायण भी होता है। इसे सभी दर्शनों का सार “निगमकल्पतरोर्गलितम्” और विद्वानों का परीक्षास्थल “विद्यावतां भागवते परीक्षा” माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बताया गया है।

इसमें कुल 12 स्कन्ध, 335 अध्याय और 18,000 श्लोक हैं। कुछ विद्वान् इसे “देवीभागवतपुराण” भी कहते हैं, क्योंकि इसमें देवी (शक्ति) का विस्तृत वर्णन हैं। इसका रचनाकाल 6 ठी शताब्दी माना जाता है।

(6.) नारद (बृहन्नारदीय) पुराणः–इसे महापुराण भी कहा जाता है। इसमें पुराण के 5 लक्षण घटित नहीं होते हैं। इसमें वैष्णवों के उत्सवों और व्रतों का वर्णन है। इसमें 2 खण्ड हैः—(क) पूर्व खणअ्ड में 125 अध्याय और (ख) उत्तर-खण्ड में 82 अध्याय हैं। इसमें 18,000 श्लोक हैं। इसके विषय मोक्ष, धर्म, नक्षत्र, एवं कल्प का निरूपण, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, गृहविचार, मन्त्रसिद्धि,, वर्णाश्रम-धर्म, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि का वर्णन है।

(7.) मार्कण्डयपुराणः—इसे प्राचीनतम पुराण माना जाता है। इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि वैदिक देवताओं का वर्णन किया गया है। इसके प्रवक्ता मार्कण्डय ऋषि और श्रोता क्रौष्टुकि शिष्य हैं। इसमें 138 अध्याय और 7,000 श्लोक हैं। इसमें गृहस्थ-धर्म, श्राद्ध, दिनचर्या, नित्यकर्म, व्रत, उत्सव, अनुसूया की पतिव्रता-कथा, योग, दुर्गा-माहात्म्य आदि विषयों का वर्णन है।

(8.) अग्निपुराणः—इसके प्रवक्ता अग्नि और श्रोता वसिष्ठ हैं। इसी कारण इसे अग्निपुराण कहा जाता है। इसे भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोश माना जाता है। इसमें इस समय 383 अध्याय, 11,500 श्लोक हैं। इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राणप्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित, फलित-ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुनविद्या, वास्तुविद्या, दिनचर्या, नीतिशास्त्र, युद्धविद्या, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोशनिर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है।

(9.) भविष्यपुराणः—इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है। इसमें दो खण्ड हैः–(क) पूर्वार्धः–(अध्याय–41) तथा (ख) उत्तरार्धः–(अध्याय़–171) । इसमें कुल 15,000 श्लोक हैं । इसमें कुल 5 पर्व हैः–(क) ब्राह्मपर्व, (ख) विष्णुपर्व, (ग) शिवपर्व, (घ) सूर्यपर्व तथा (ङ) प्रतिसर्गपर्व। इसमें मुख्यतः ब्राह्मण-धर्म, आचार, वर्णाश्रम-धर्म आदि विषयों का वर्णन है। इसका रचनाकाल 500 ई. से 1200 ई. माना जाता है।

(10.) ब्रह्मवैवर्तपुराणः—यह वैष्णव पुराण है। इसमें श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें कुल 18,000 श्लोक है और चार खण्ड हैः—(क) ब्रह्म, (ख) प्रकृति, (ग) गणेश तथा (घ) श्रीकृष्ण-जन्म।

(11.) लिङ्गपुराणः—-इसमें शिव की उपासना का वर्णन है। इसमें शिव के 28 अवतारों की कथाएँ दी गईं हैं। इसमें 11,000 श्लोक और 163 अध्याय हैं। इसे पूर्व और उत्तर नाम से दो भागों में विभाजित किया गया है। इसका रचनाकाल आठवीं-नवीं शताब्दी माना जाता है। यह पुराण भी पुराण के लक्षणों पर खरा नहीं उतरता है।

(12.) वराहपुराणः—इसमें विष्णु के वराह-अवतार का वर्णन है। पाताललोक से पृथिवी का उद्धार करके वराह ने इस पुराण का प्रवचन किया था। इसमें 24,000 श्लोक सम्प्रति केवल 11,000 और 217 अध्याय हैं।

(13.) स्कन्दपुराणः—यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बडा पुराण है। इसमें कुल 81,000 श्लोक हैं। इसमें दो खण्ड हैं। इसमें छः संहिताएँ हैं—सनत्कुमार, सूत, शंकर, वैष्णव, ब्राह्म तथा सौर। सूतसंहिता पर माधवाचार्य ने “तात्पर्य-दीपिका” नामक विस्तृत टीका लिखी है। इस संहिता के अन्त में दो गीताएँ भी हैं—-ब्रह्मगीता (अध्याय–12) और सूतगीताः–(अध्याय 8)।

इस पुराण में सात खण्ड हैं—(क) माहेश्वर, (ख) वैष्णव, (ग) ब्रह्म, (घ) काशी, (ङ) अवन्ती, (रेवा), (च) नागर (ताप्ती) तथा (छ) प्रभास-खण्ड। काशीखण्ड में “गंगासहस्रनाम” स्तोत्र भी है। इसका रचनाकाल 7 वीं शताब्दी है। इसमें भी पुराण के 5 लक्षण का निर्देश नहीं मिलता है।

(14.) वामनपुराणः–इसमें विष्णु के वामन-अवतार का वर्णन है। इसमें 95 अध्याय और 10,000 श्लोक हैं। इसमें चार संहिताएँ हैं—-(क) माहेश्वरी, (ख) भागवती, (ग) सौरी तथा (घ) गाणेश्वरी । इसका रचनाकाल 9 वीं से 10 वीं शताब्दी माना जाता है।

(15.) कूर्मपुराणः—इसमें विष्णु के कूर्म-अवतार का वर्णन किया गया है। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) ब्राह्मी, (ख) भागवती, (ग) सौरा तथा (घ) वैष्णवी । सम्प्रति केवल ब्राह्मी-संहिता ही मिलती है। इसमें 6,000 श्लोक हैं। इसके दो भाग हैं, जिसमें 51 और 44 अध्याय हैं। इसमें पुराण के पाँचों लक्षण मिलते हैं। इस पुराण में ईश्वरगीता और व्यासगीता भी है। इसका रचनाकाल छठी शताब्दी माना गया है।

(16.) मत्स्यपुराणः—इसमें पुराण के पाँचों लक्षण घटित होते हैं। इसमें 291 अध्याय और 14,000 श्लोक हैं। प्राचीन संस्करणों में 19,000 श्लोक मिलते हैं। इसमें जलप्रलय का वर्णन हैं। इसमें कलियुग के राजाओं की सूची दी गई है। इसका रचनाकाल तीसरी शताब्दी माना जाता है।

(17.) गरुडपुराणः—यह वैष्णवपुराण है। इसके प्रवक्ता विष्णु और श्रोता गरुड हैं, गरुड ने कश्यप को सुनाया था। इसमें विष्णुपूजा का वर्णन है। इसके दो खण्ड हैं, जिसमें पूर्वखण्ड में 229 और उत्तरखण्ड में 35 अध्याय और 18,000 श्लोक हैं। इसका पूर्वखण्ड विश्वकोशात्मक माना जाता है।

(18.) ब्रह्माण्डपुराणः—इसमें 109 अध्याय तथा 12,000 श्लोक है। इसमें चार पाद हैं—(क) प्रक्रिया, (ख) अनुषङ्ग, (ग) उपोद्घात तथा (घ) उपसंहार । इसकी रचना 400 ई.-600 ई. मानी जाती है।
——————-
नोट:-असली पुराण ब्राह्मण के नाम से उपलब्ध हैं।
ऋग्वेद = ऐतरये ब्राह्मण
यजुर्वेद = शतपथ ब्राह्मण
सामवेद = ताण्ड्य ब्राह्मण
अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण मुख्य पुराण हैं।
“आर्य जगत तथाकथित भागवत आदि 18 पुराणों को अनार्ष ग्रन्थ होने के कारण नहीं मानता”


from Tumblr http://ift.tt/1I8y06F
via IFTTT

No comments:

Post a Comment