Wednesday, December 30, 2015

वेद सन्देश =========== “मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा | साम्यञ्चः सव्रता...

वेद सन्देश
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“मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा | साम्यञ्चः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया ||”
अथर्ववेद
अर्थ:–
भाई भाई से द्वेष न करे, बहिन बहिन से द्वेष न करे | सब एक दूसरे के अनुकूल, एक चित्त और एक उद्देश्य वाले होकर एक दूसरे के प्रति कल्याणकारी और सुखप्रद रीति से मधुर बोला करें |

आहा ! कितना सुन्दर सन्देश दिया गया है वेदों में ।वाणी की मधुरता , परस्पर प्रेम एवम् सौहार्द्र की शिक्षा दी गयी है कि सभी सुख देने वाली वाणी का प्रयोग करें।

जीवन में वाणी का बहुत महत्व है। वाणी में अमृत भी है और विष भी, मिठास भी और कड़वापन भी। सुनते ही सामने वाला आग बबूला हो जाए और यदि वाणी में शालीनता है, तो सुनने वाला प्रशंसक बन जाए।

ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय।।


वाणी हमें सम्मान भी दिलाती है और अपमान भी। जब मन में अहंकार होता है , क्रोध होता है तो वाणी स्वाभाविक रूप से कर्कश हो जाती है। और सबसे पहले स्वयं को हानि पहुचाती है।दूसरा व्यक्ति तो बाद में परेशान होता है पर कठोर वाणी बोलने वाले व्यक्ति की हंसी , प्रसन्नता, ख़ुशी चेहरे से पहले ही गायब कर देती है।

और यदि हम मीठा बोलते हैं तो उसका प्रभाव भी अच्छा होता है। और मीठा हम तभी बोल पाएंगे जब मन में अच्छे विचार हों।यदि स्वयं को ही हम सबसे श्रेष्ठ मानते रहेंगे , दूसरों को तुच्छ समझते रहेंगे तो अच्छे विचार भी मन में आना असंभव है।
इसलिए पहले अहं भाव को मिटाना आवश्यक है।
मधुर वाणी दूसरों को तो प्रसन्न करती ही है स्वयं को भी प्रसन्न कर देती है।

“कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता।और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है” ।


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