Monday, December 21, 2015

७ पौष 21 दिसम्बर 2015 😶 “ हे परमेश्वर ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् नू ष्टुत इन्द्र नू...

७ पौष 21 दिसम्बर 2015

😶 “ हे परमेश्वर ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो३न पीपे: । 🔥🔥
🍃🍂 अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्य: सदासा: ।। 🍂🍃

ऋक्० ४ । १६ ।२१

ऋषि:- वामदेव: ।। देवता- इन्द्र: ।। छन्द:- निचृत्पक्त्ङि।।

शब्दार्थ- हे इन्द्र!
निःसन्देह तू स्तुति किया गया है, अब भी तू मुझमें स्तूयमान होता हुआ मुझ स्तोता के लिए इष्ट वस्तु को, अन्न को नदियों की भाँति भरपूर कर दे। हे हरियोंवाले! तेरा नया अनुभव, ज्ञान मैंने किया है, मैं बुद्धि और कर्म से तेरे रथ के योग्य और तेरा सदा संभजन करनेवाला होउँ।

विनय:- हे परमेश्वर!
तू सदा सब सन्तों द्वारा स्तुति किया गया है। मैं भी आज तेरी ही स्तुति कर रहा हूँ। स्तूयमान होता हुआ तू अब तो मुझे स्तोता की भी इच्छाओं को पूर्ण कर दे। मुझे वह ‘इष’ प्रदान कर दे जिसका मैं भूखा हूँ। इस अन्न से तू मुझे छका दे। जैसे नदियाँ जल से भरपूर होती हैं, वैसे तू मुझे मेरे 'इष’ से भरपूर कर दे। मैं तो तेरे दर्शन का भूखा हूँ। अपना यह दर्शन देकर हे इन्द्र! तू मुझे पूरी तरह परितृप्त कर दे। मैंने आज तेरा नया अनुभव किया है, तेरे एक नये स्वरूप का ज्ञान प्राप्त किया है और मैंने तेरे इसी स्वरूप के खूब गुण गाये हैं।
हे हरिवन्!
तू अब अपने इस रूप के दर्शन देकर मुझे पूरी तरह तृप्त कर दे। हे हरियोंवाले! मैं देखता हूँ कि तू अपने इस संसाररूपी रथ को अपनी ज्ञान-क्रिया और बलक्रिया के हरियों (घोड़ों) से सञ्चालित कर रहा है। तेरे इस स्वरूप को देखकर मैं अब और कुछ नहीं चाहता, इतना ही चाहता हूँ कि मैं तेरे इस रथ के योग्य हो जाऊँ। तेरे हरिवान् रूप को देखकर अब मैं चाहता हूँ कि अपनी बुद्धि से, अपने कर्म से तेरा रथ्य हो जाऊँ और सदा तेरा संभजन करनेवाला हो जाऊँ। तेरा रथ्य होने के लिए यह आवश्यक है कि मैं सदा तेरा संभजन किया करूँ। इसलिए हे इन्द्र! अब तू ऐसी कृपा कर कि मैं अपनी प्रत्येक बुद्धि से, अपने प्रत्येक कर्म से सदा रथ्य बना रहूँ और सदा तेरा संभजन करनेवाला बना रहूँ।

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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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