(~भारत चालीसा या ।। गौरव-गान।।
आर्य कवि पंडित जगदीशचन्द्र ”प्रवासी“)
13 - महाभारत
जहां कृष्ण ने जरासंध, शिशुपाल, कंस हत लिया स्वराज।
उग्रसेन को गद्दी देकर प्रधान पद पर गये विराज।।
विदुर, सुदामा, कुब्जा, उद्धों से दीनन के थे सिर-ताज।
भरी सभा में सती द्रौपदी की रख दी थी सतित्व-लाज।।
कौरव, पाण्डव आपस में जब बजा दिये थे रण के साज।
कौरव को निज सेना दे सारथी बने ले पाण्डव-काज।।
भीष्म, शकुनी, दुर्योधन औ द्रोण, दुशासन, कर्णधिराज।
प्राण खो गये सर के मारे यमपुर गये शरण यमराज।।
मृत अर्जुन में जान डाल दी थी गीता की तान।
है भूमण्डल में भारत देश महान।।
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